सिवनी-आज पूज्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने दण्ड दीक्षा दिवस पर अपनी पावन तपोभूमि परमहंसी गङ्गा आश्रम में सनातन धर्मावलंबियों के मध्य प्रवचन में संन्यास धर्म की एवं संन्यासी की व्याख्या करते हुऐ बतलाया कि संन्यासी समस्त विश्व को अभय दान देने के लिये दण्ड धारण करते हैं। कर्म से उस आत्मा को नहीं पाया जा सकता अतः उस अविनाशी आत्मा को प्राप्त करने के लिये कर्म का त्याग किया जाता है। वह क्षण धन्य है जबकि इस असार संसार से वैराग्य लेकर व्यक्ति व्रह्म की जिज्ञासा करता है। उस समय शास्त्रों की यह आज्ञा है कि श्रोत्रिय एवं ब्रह्मनिष्ठ गुरू की शरण में जाना चाहिए उनकी सेवा शुश्रूषापूर्वक जब वे ज्ञान देते हैं उसके जीव कृतार्थ होता है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों के आचार्य श्रोत्रिय एवं ब्रह्मनिष्ठ होते हैं।
आदि शंकराचार्य जी के संन्यास स्थल पर बोलते हुये पूज्य महाराज श्री ने कहा नर्मदा के उत्तर तट पर नरसिंहपुर जिले में आदि गुरू शंकराचार्य जी का संन्यास स्थल है जो कि गोविन्दनाथ वन स्थित एक अत्यंत प्राचीन गुफा में है।वर्तमान मुख्यमंत्री जी तथ्यों की अनदेखी कर ओंकारेश्वर में शंकराचार्य जी का संन्यास स्थल प्रचारित कर रहे हैं । जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। नरसिंहपुर गजेडीयर और शंकर दिग्विजय जैसे विभिन्न ग्रंथों में यह प्रमाणित है कि शंकराचार्य जी का संन्यास स्थल नरसिंहपुर के पास नर्मदा के उत्तर तट पर गोविन्दनाथ वन स्थित हजारों वर्ष प्राचीन गुफा ही उनका संन्यास स्थल है।