मान का ‘मान’ पचा पाएंगे केजरीवाल श्रीमान ?

SHUBHAM SHARMA
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Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena...
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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान पंजाब में ‘आप’ को मिली धमाकेदार जीत के बाद पार्टी में सब बमबम है। चारों ओर गुणगान है, चंवर झुलाए जा रहे हैं और मीडिया के विशेषणयुक्त मंगलगीतों में कमियों को भी खासीयत बता कर पेश किया जा रहा है।

लेकिन इस जीत पर प्रतिक्रिय देते हुए पार्टी के सर्वेसर्वा दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के कहे हुए शब्दों ने सबको चौंकाया है। मतगणना के दौरान जीत के बढ़ते ग्राफ को देख कर केजरीवाल ने कहा कि ‘पंजाब की जीत डरा रही है।’ सामान्य तौर पर इन शब्दों का भाव है कि जैसे केजरीवाल कह रहे हों कि देश की जनता ने बड़ी जिम्मेवारी के लिए पार्टी से नई उम्मीद बान्धी है, और जनता की पार्टी के प्रति बढ़ी अपेक्षा डरा रही है।

परन्तु पूछने वाले पूछ रहे हैं कि क्या भगवन्त मान की लोकप्रियता ने केजरीवाल को भी डरा दिया ? क्या पार्टी में अभी तक ‘एकलमुण्डी सेना’ रहे केजरीवाल भगवन्त मान के अपने से ऊंचे कद को बर्दाश्त कर पाएंगे ?

केजरीवाल व मान पर यह कहावत बिल्कुल स्टीक बैठती है कि गुरु गुड़ रहे और चेला शक्कर हो गए। केजरीवाल दिल्ली जैसे छोटे व केन्द्र शासित राज्य के मुख्यमन्त्री हैं तो भगवन्त मान दिल्ली से कई गुणा बड़े और पूर्णरुपेण राज्य के सूबेदार बन गए हैं।

दिल्ली में केजरीवाल को हर निर्णय के लिए उप-राज्यपाल की मुंह की ओर तकना पड़ता है जबकि भगवन्त मान के सामने ऐसी कोई विवशता नहीं होगी। केजरीवाल के नियन्त्रण में दिल्ली पुलिस सहित मुख्यमन्त्री के अनेक अधिकार नहीं हैं परन्तु भगवन्त मान के पास एक पूर्ण राज्य के मुख्यमन्त्री की सारी शक्तियां होंगी।

देश के मुख्यमन्त्रियों की पंक्ति में मान को केजरीवाल से अधिक ‘मान’ मिलना तय है और केजरीवाल के स्वभाव की ओर देखें तो यह उनको अखर सकता है।

यहां यह बात भी वर्णननीय है कि पंजाब के विगत विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने अपना चेहरा आगे कर राजनीतिक पासा फेंका था परन्तु, उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिवी। अबकी बार 2022 के चुनावों में भी केजरीवाल ने प्रचार का प्रारम्भ बिना पंजाबी नेता के चेहरे के किया।

इसको लेकर पार्टी के स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं में आक्रोश भी था कि केजरीवाल दिल्ली के लोगों को आगे ला रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इसी आक्रोश के चलते कई विधायकों ने अपने पदों से त्यागपत्र भी दे दिए थे।

शायद मजबूरीवश मतदान के एक माह पहले 18 जनवरी को केजरीवाल ने कथिततौर पर जनता की राय ले कर भगवन्त मान को मुख्यमन्त्री का चेहरा घोषित करना पड़ा। इसके बाद ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की हवा बननी शुरू हुई जो मतदान तक आन्धी में परिवर्तित हो गई।

लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर चले अन्ना हजारे आन्दोलन के प्रतिफल में उपजी आम आदमी पार्टी चाहे लोकशाही के लाख दावे करती है, परन्तु इसमें आन्तरिक लोकतन्त्र का जन्म से अभाव रहा है। पार्टी का गठन नवम्बर 2012 में हुआ और तब से पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक पद पर अरविन्द केजरीवाल ही आसीन चले आ रहे हैं। केवल इतना ही नहीं पार्टी व दिल्ली सरकार के महत्त्वपूर्ण पद भी उन्होंने अपने चहेतों में ही बाण्टे हुए हैं।

पार्टी की बैठकों में अरविन्द केजरीवाल के इशारों को ही भगवद् इच्छा मान कर स्वीकार कर लिया जाता है। केजरीवाल ने पार्टी में अपना विरोध करने वालों व उनको भविष्य में चुनौती पेश करने वाले कद्दावर नेताओं को एक के बाद एक निस्तेज कर दिया जिन्हें अन्तत: पार्टी को छोडऩा पड़ा।

याद करें कि अन्ना हजारे आन्दोलन में केजरीवाल के साथ किरण बेदी, योगेन्द्र यादव, पत्रकार आशुतोष, प्रशान्त किशोर, जनरल वीके सिंह, कुमार विश्वास, कपिल मिश्रा सहित कई ज्ञात-अज्ञात चेहरे मंच पर नजर आते थे।

बाद में इनमें कईयों ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण की और कई स्तर पर चुनाव भी लड़े, परन्तु आज वे पार्टी में दिखाई नहीं पड़ते। केजरीवाल की तानाशाह कार्यप्रणाली के चलते इन्हें या तो दूसरे दलों में जाना पड़ा या राजनीतिक हाशीए पर।

व्यक्तिवादी व परिवारवादी दल देश की राजनीति के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं। इस तरह के विचारशून्य दलों में उच्च पद पर आसीन कोई भी नेता स्वेच्छा से अपना पद छोडऩे को राजी नहीं होता। केवल इतना ही नहीं, भविष्य में जो उनके लिए खतरा बने उस नेता के पर काटने में भी देर नहीं लगाई जाती।

देश की परिवारवादी पार्टियों में कांग्रेस, सपा, डीएमके सहित अनेक दल इसके उदाहरण हैं, जहां परिवार के लिए प्रतिभा का गला घोण्ट दिया जाता है। देश में आम आदमी पार्टी एक घोर व्यक्तिवादी दल बन कर उभरा है जिसमें ‘यस बॉस’ की संस्कृति ही संस्कार है।

ऐसे में भगवन्त मान ने लोकप्रियता के मामले में अरविन्द केजरीवाल से ऐसी बड़ी लकीर खीञ्च दी है जो पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में खुद ‘आप सुप्रीमो’ भी नहीं खींच सके। सच पूछा जाए तो आज आम आदमी पार्टी में पहले-दूसरे नम्बर के नेता की बात की जाए तो मान व केजरीवाल में ‘लम्बूजी’ और ‘टिंगूजी’ के फिल्म कुली के पात्र नजर आते हैं।

भगवन्त मान पंजाब में कुछ अच्छा कर पाए तो इस ऊंचाई का अन्तर और भी बढ़ जाएगा। अब सवाल है कि मान का यही ‘मान’ श्रीमान केजरीवाल कितना पचा पाएंगे ? यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा।

– राकेश सैन

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Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
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