मनोज मुंतशिर शुक्ला, जो एक गीतकार और लेखक हैं, ने कहा कि वे नवाब भोपाल को अपनी निजी संपत्ति समझते थे। मैं इसे कहना चाहता हूं कि भोपाल एक ऐसा शहर नहीं है जिसे मोहम्मद के तरह के लूटेरे और नवाब हमीदुल्लाह के तरह के आतंकवादियों का नगर समझा जाए। यह राजा भोज का नगर है।
यहां राजा भोज जैसे पालक मौजूद हैं, यहां राजा भोज जैसे शिव भक्त मौजूद हैं। आजकल मध्य प्रदेश में शिव की राजधानी है। भोपाल का नाम अब भोजपाल होना चाहिए, लेकिन वह कब होगा? यह मेरी नहीं, मेरे भोपाल के साथियों की मांग है।
मुंतशिर गुरुवार को भोपाल के गौरव दिवस पर पहुंचे। उन्होंने नए संसद भवन में विपक्षी दलों की अनुपस्थिति के बारे में कहा, कि प्रधानमंत्री मोदी के वास्तु शास्त्र का काम चल रहा है। आसुरी शक्तियाँ संसद से दूर हैं।
मंच पर बोले मुंतशिर
मैं भोपाल में हूं, आप सबको नमस्ते करता हूं। मैं एक शेर सुनते हुए कहता हूं – “मुझे तारीफों का हकदार नहीं, न किसी शौहरत का अधिकारी हूं, सब बिजली उसकी है, मैं तो बस एक तारा हूं।” मुख्यमंत्री शिवराज जी, आपने गुलामी के प्रतीकों को गिरा दिया है।
इस्लामनगर फिर से जगदीशपुर बन गया है, और नसरुल्लागंज फिर से भैरूंदा हो गया है। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति हो गया है। मैं जिस भूमि पर खड़ा हूं, वह राजा भोज का पवित्र नगर है। पर यह दुःखद है कि यह आज भी भोपाल के नाम से पुकारा जाता है, जो दोस्त मोहम्मद और हमीदुल्लाह की याद दिलाता है।
मध्यप्रदेश में आना ही खुशनसीबी की बात है, लेकिन जब भोपाल जाना हो तो मैं सोचते हुए खुश हो जाता हूं कि आज मैं वहां पहुंचा हूं, जहां अगस्त्य मुनि ने अपने पवित्र चरणों से स्पर्श किया था। मैं वहां पहुंचा हूं, जहां मां नर्मदा अपनी स्नेहपूर्वक धारा बहाती हैं। मैं वहां पहुंचा हूं, जहां नौ नदियों और 99 झरनों के पवित्र जल से निर्मित जलाशय है।
सबसे महत्वपूर्ण चीज़ तो यह है कि भोपाल के मूल्यवान लोग हैं, जो अपने महान राजा भोज के प्रेरणादायक संस्कारों को भूल नहीं सकते। हम सभी जानते हैं कि राजा भोज अपने दरबार में कवियों और साहित्यकारों को कितना सम्मान करते थे। आज मुझे भोपाल बुलाया है, यह मेरे लिए चौथी बार है। आज भोपाल का गौरव दिवस है, यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है।
आज की तारीख 1 जून है। आज ही के दिन 1949 में भोपाल में पहली बार भारतीय ध्वज लहराया गया था। इस दिन भोपाल ने आजादी की श्वास ली थी। आप सोच रहे होंगे कि देश तो 15 अगस्त 1947 को ही आजाद हो गया था, फिर भोपाल को दो साल और क्यों इंतजार करना पड़ा? इसका कारण था कि भोपाल की आजादी को एक लोभी नवाब ने अपने नियंत्रण में रखा था। उनका नाम हमीदुल्लाह खान था, जो भोपाल के नवाब थे और अपने आप को भोपाल की अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे। उन्हें चाहिए था कि इस जगह पर भारतीय ध्वज की बजाय पाकिस्तान का झंडा लहराएगा।
पाकिस्तान का झंडा भोपाल में…। लेकिन नवाब साहब को कौन बताएगा कि यह योगी राजा भोज की पवित्र भूमि है, जिसमें उनकी तपस्विता समाहित है। वे राजा भोज, जिन्होंने समझा था कि पृथ्वी किसी की संपत्ति नहीं है। पृथ्वी मुक्त है। पृथ्वी अपने शासक स्वयं चुनती है। यह छोटी सी बात नवाब साहब नहीं समझ पाए।
हमारे नवाब जिन्ना पर ध्यान देंकि उन्हें अच्छी तरह से समझ आया था कि उनका नाम भोपाल के साथ जुड़ा हुआ है। वे दृढ़तापूर्वक यही चाहते थे कि भोपाल कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा न बने। आज मैं सोचता हूं, यदि ऐसा हुआ होता तो क्या होता? अगर भोपाल पाकिस्तान का हिस्सा बन गया होता, तो भोपाल की वर्तमान स्थिति क्या होती? हम देख रहे हैं कि जो कल तक कश्मीर मांग रहे थे, आज आटा लेने की लाइन में खड़े हैं। लेकिन आपके पूर्वजों को यह लगातार ध्यान देने की ज़रूरत थी कि वे अपने देश के लिए गाते रहें, भोपाल में तिरंगा लहराते रहें।