मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की प्रमुख पीठ जबलपुर ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) 2025 की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी है। अदालत ने आयोग को बिना हाई कोर्ट की अनुमति के परिणाम प्रकाशित करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति की पीठ का फैसला
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा पारित किया गया, जब उन्होंने भोपाल निवासी ममता दहरिया की याचिका पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ता ने MPPSC 2025 परीक्षा के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी थी और तर्क दिया कि ये प्रावधान आरक्षित श्रेणी के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को सामान्य (UR) श्रेणी में स्थान प्राप्त करने से रोकते हैं।
याचिकाकर्ता की दलीलें और आपत्तियां
याचिकाकर्ता ममता दहरिया ने अपनी याचिका में कहा कि मध्य प्रदेश राज्य सेवा भर्ती परीक्षा नियम 2015 के नियम 4(1)(a)(ii), 4(2)(a)(ii) और 4(3)(a)(ii), साथ ही 7 नवंबर 2000 के सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के परिपत्र और 31 दिसंबर 2024 को जारी MPPSC विज्ञापन संविधान के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ मिलने के बावजूद, अगर वे सामान्य श्रेणी में योग्यता के आधार पर स्थान प्राप्त करने के योग्य हैं, तो उन्हें इसका अवसर मिलना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें और संवैधानिक सवाल
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि मध्य प्रदेश सरकार भले ही आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को आयु सीमा, शैक्षणिक योग्यता और परीक्षा शुल्क में छूट देती हो, लेकिन यदि कोई आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार सामान्य वर्ग में अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे वहां स्थान मिलना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (रोजगार के अवसरों में समानता) का उल्लंघन करता है।
हाई कोर्ट की अगली कार्रवाई और सरकार की प्रतिक्रिया
हाई कोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) और MPPSC को इस मामले में 15 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी, और तब तक MPPSC 2025 के परिणामों को न जारी करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया है।
यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?
- सामाजिक न्याय: यह मामला आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के साथ न्याय और योग्यता के आधार पर चयन से संबंधित है।
- संविधान का पालन: संविधान में दिए गए समानता के अधिकार की रक्षा करने का प्रयास।
- आरक्षण बनाम योग्यता: यह बहस फिर से सामने आ गई है कि क्या आरक्षण का लाभ लेने वाले उम्मीदवारों को भी सामान्य श्रेणी में अवसर मिलना चाहिए?
- भविष्य की परीक्षाओं पर प्रभाव: यदि अदालत का फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में आता है, तो यह MPPSC और अन्य सरकारी भर्तियों की नीतियों में बदलाव ला सकता है।
MPPSC उम्मीदवारों के लिए आगे की राह
- अदालती निर्णय पर नजर रखें – उम्मीदवारों को इस मामले की अगली सुनवाई और अदालत के अंतिम फैसले का इंतजार करना होगा।
- MPPSC की आधिकारिक वेबसाइट पर अपडेट देखें – कोई भी आधिकारिक सूचना MPPSC की वेबसाइट पर प्रकाशित होगी।
- कानूनी सहायता लें – यदि कोई उम्मीदवार इस निर्णय से प्रभावित होता है, तो वह कानूनी सलाह ले सकता है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला राज्य में सरकारी भर्तियों की प्रक्रिया को लेकर महत्वपूर्ण कानूनी बहस खड़ी कर सकता है। अगर अदालत MPPSC के नियमों को असंवैधानिक करार देती है, तो इससे न केवल मध्य प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों की भर्ती प्रक्रियाओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
FAQ ABOUT: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एमपीपीएससी प्रारंभिक 2025 रिजल्ट पर लगा दी रोक
यह रोक एक याचिका के कारण लगी, जिसमें एमपीपीएससी के कुछ नियमों को चुनौती दी गई थी।
उनका तर्क है कि आरक्षित वर्ग के मेधावी उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में चयन का अधिकार मिलना चाहिए।
एमपीपीएससी और सरकार 15 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करेंगे, जिसके बाद अदालत अगली सुनवाई करेगी।
संभावना है कि यह मामला अन्य राज्यों में भी आरक्षण नीति पर बहस को जन्म दे सकता है।
कोर्ट ने अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है।