पाक में दफन होती हिंदू-बौद्ध संस्कृति: भारत के प्रति शत्रुभाव रखने के कारण ही पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में जीवित है

Khabar Satta
By
Khabar Satta
खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
8 Min Read

पाकिस्तान की शीर्ष अदालत द्वारा निर्देशित आयोग की हिंदू मंदिरों की वस्तुस्थिति पर हाल में एक रिपोर्ट आई। इसमें जो दुर्भाग्यपूर्ण तथ्यों का प्रकटीकरण हुआ है, उससे मैं न तो अचंभित हूं और न ही भारतीय मीडिया के एक वर्ग द्वारा इसकी उपेक्षा पर आश्चर्यचकित। यह रिपोर्ट इसी कटु सत्य को रेखांकित करती है कि ‘काफिर-कुफ्र’ के मजहबी दर्शन से प्रेरित व्यवस्था में गैर-इस्लामी संस्कृति और उसके प्रतीकों के लिए कोई स्थान नहीं है। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक सदस्यीय अल्पसंख्यक अधिकार आयोग ने गत 5 फरवरी को यह विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। इसमें सभी हिंदू मंदिरों (प्राचीन सहित) के खंडहर में परिवर्तित होने की बात कही गई है। इनमें चकवाल स्थित महाभारतकालीन कटासराज मंदिर भी शामिल है। विभाजन से पहले उसका महत्व जम्मू स्थित मां वैष्णो देवी मंदिर के समकक्ष था। इन सभी मंदिरों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड यानी ईटीपीबी को आयोग ने पूरी तरह विफल बताया है।

पाक में मंदिरों की जर्जर अवस्था के लिए हिंदुओं-सिखों की कम आबादी जिम्मेदार है: ईटीपीबी

पाकिस्तान में 1960 से सक्रिय ईटीपीबी को वैधानिक दर्जा प्राप्त है। यह अल्पसंख्यकों के प्रति कितना गंभीर है, यह उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह का नाम ‘महाराजा रमजीत सिंह’ लिखे होने से स्पष्ट हो जाता है। गत दिसंबर में खैबर पख्तूनख्वा में जिहादियों की भीड़ ने जिस प्राचीन हिंदू मंदिर को ध्वस्त किया, उससे जुड़े एक अन्य मामले में जब शीर्ष अदालत ने ईटीपीबी से जवाब मांगा, तब भी उसे रिपोर्ट देने में कई महीने लग गए। जांच आयोग का ईटीपीबी पर आरोप है कि यह उन अल्पसंख्यक पूजास्थलों में ही रुचि रखता है, जहां से उसका आर्थिक हित जुड़ा हो। यह विडंबना ही है कि करतारपुर साहिब के प्रबंधन का काम इमरान सरकार ने इसी भ्रष्ट संस्था को सौंपा। ईटीपीबी के अनुसार, पाकिस्तान के 365 मंदिरों में से 13 का प्रबंधन ही उसके पास है। 65 मंदिरों की जिम्मेदारी हिंदू समुदाय स्वयं उठाता है, वहीं 287 मंदिरों पर भू-माफिया का कब्जा है। ईटीपीबी ने मंदिरों की जर्जर अवस्था के लिए हिंदुओं-सिखों की बहुत कम आबादी को कारण बताया है। क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यक आबादी के नगण्य होने का एकमात्र कारण यह है कि उसने 1947 में वहां से भारत पलायन कर लिया था? नहीं।

विभाजन के समय पाक में हिंदुओं-सिखों की आबादी 15-16 प्रतिशत थी, वह आज एक फीसद रह गई

फिलहाल पाकिस्तान की कुल आबादी करीब 21 करोड़ है। यदि विभाजन के समय मजहबी जनसांख्यिकी प्रतिशत को आधार बनाएं तो आज वहां हिंदू-सिखों की संख्या तीन से साढ़े तीन करोड़ के आसपास होनी चाहिए थी, जो केवल 50-60 लाख है। वे भी दोयम दर्जे का जीवन जीने को विवश हैं। आखिर ढाई-तीन करोड़ हिंदू-सिख कहां गए? सच तो यह है कि पाकिस्तान में हिंदुओं-सिखों ने या तो मजहबी उत्पीड़न से त्रस्त होकर इस्लाम अपना लिया या पलायन कर लिया और जिसने विरोध किया, उसे मार दिया गया। हिंदू सहित जो अन्य अल्पसंख्यक वहां बचे भी हैं, वे प्रताड़ना के शिकार हैं। सिंध प्रांत में आए दिन जिहादियों द्वारा गैर-मुस्लिम युवतियों का जबरन मतांतरण इसका प्रमाण है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की जो आबादी करीब 15-16 प्रतिशत थी, वह आज बमुश्किल एक प्रतिशत रह गई है। इस पृष्ठभूमि में भारत में मुस्लिमों की स्थिति क्या है? आजादी के समय खंडित भारत की आबादी 33 करोड़ में मुस्लिम तीन करोड़ से अधिक थे, जो आज कम से कम 20-21 करोड़ हो गए हैं। इन सभी को कुछ मामलों में बहुसंख्यकों से भी अधिक अधिकार प्राप्त हैं। फिर भी दस साल तक उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी जैसे लोग देश में असुरक्षित अनुभव करते हैं।

पाक में सात दशकों से अल्पसंख्यकों का मजहबी शोषण और उनके प्रतीक-चिन्हों का दमन जारी है

पाक में सात दशकों से अल्पसंख्यकों का मजहबी शोषण और उनके प्रतीक-चिन्हों का दमन जारी है। अपनी मूल हिंदू-बौद्ध सांस्कृतिक पहचान के बजाय स्वयं को पश्चिम एशियाई देश के रूप में परिभाषित करना और हिंदू बहुल खंडित भारत के प्रति शत्रुभाव रखना पाकिस्तान के एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने का कारण है। यह सही है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी संविधान सभा में एक पंथनिरपेक्ष पाकिस्तान बनाने की वकालत की थी। यह विचार उस ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ के उलट था, जो स्वतंत्र अखंड भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंदुओं के साथ बराबर बैठने में घृणा से सिंचित था, जिसमें 600 वर्षों तक पराजित हिंदुओं पर राज करने, तलवार के बल पर मतांतरण करने और उनके मंदिरों को तोड़ने की दुर्भावना थी। इसीलिए जिन्ना के निधन के पश्चात पाकिस्तानी नीति-निर्माताओं ने ‘शरीयत’ को अंगीकार कर लिया। जिन भारतीय क्षेत्रों को मिलाकर 1947 में पाकिस्तान बनाया गया था, वहां हजारों वर्ष पहले वेदों की ऋचाएं गढ़ी गईं। बहुलतावादी सनातन संस्कृति का विकास हुआ। यही कारण है कि वैदिक सभ्यता की जन्मभूमि होने के कारण उस भूक्षेत्र में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के कई सौ मंदिर-गुरुद्वारे थे। इनमें से कई आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थे।

पाक में मंदिर/शिवालय मस्जिद/दरगाह में बदल दिए गए 

सैयद मोहम्मद लतीफ और खान बहादुर की पुस्तक ‘लाहौर: इट्स हिस्ट्री, आर्किटेक्चरल रीमेंस एंड एंटिक्स’, को मैंने बतौर राज्यसभा सदस्य 2003 में अपने आधिकारिक पाक दौरे पर लाहौर से खरीदी थी। इसमें लाहौर के कई ऐतिहासिक शिवालयों, मंदिरों और गुरुद्वारों का विस्तार से वर्णन है। भाई बस्ती राम हवेली के निकट बांके बिहारी का मंदिर लाहौर का सबसे धनी मंदिर था। जब मैं पुस्तक में वर्णित पूजास्थलों की स्थिति देखने निकला तो उनकी विभीषिका देखकर स्तब्ध रह गया। पता चला कि 1947 के बाद वे मंदिर/शिवालय या तो मस्जिद/दरगाह में परिवर्तित कर दिए गए या किसी की निजी संपत्ति बन गए या फिर लावारिस खंडहर बन चुके हैं।

हिंदू-सिखों की दुर्गति: पाक का ‘ईको-सिस्टम’ बहुलतावाद, पंथनिरपेक्षता को अस्वीकार करता है

मंदिरों के भग्नावशेषों के सरकारी संरक्षण के बजाय स्थानीय लोगों को हिंदुओं की आस्था को कलंकित और अपमानित करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। जब मैं लाहौर के प्रसिद्ध रेस्त्रां कूक्कू डेन पहुंचा, तब वहां जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों और मंदिर अवशेषों ने मुझे झकझोर दिया। पाकिस्तान में गैर-इस्लामी प्रतीकों और शेष हिंदू-सिखों की दुर्गति इसलिए है, क्योंकि वहां का ‘ईको-सिस्टम’ बहुलतावाद और पंथनिरपेक्षता जैसे जीवन मूल्यों को अस्वीकार करता है।

- Join Whatsapp Group -
Share This Article
Follow:
खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *