कोरबा। कोरोना संक्रमण के मौजूदा दौर में खेती का तरीका बदलने लगा है। बाजार की बदलती जरूरतों को छत्तीसगढ़ में कोरबा के किसानों ने भांप लिया है। यही वजह है कि जिले के 55 किसानों ने धान की खेती छोड़कर इस बार 200 एकड़ में औषधीय खेती की शुरुआत की है। अकेले 25 एकड़ में तो शतावर की खेती की जा रही है। एक निजी कंपनी ने किसानों से फसल खरीदने का अनुबंध भी कर लिया है।
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए इन दिनों शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके चलते देश-दुनिया में औषधीय उत्पादों की मांग बढ़ गई है। बाजार की मांग को देखते हुए जिले के चार गांव मुढ़ुनारा, ढेंगुरडीह, कोरकोमा और कुरूडीह के किसानों ने औषधीय खेती शुरू कर दी है। केरल से मंगाई गई काली मिर्च की बेलें सागौन के पेड़ के सहारे पनप रही हैं। तीन साल में यह फसल तैयार हो जाएगी। 25 टन शतावर व 20 टन श्योनाक समेत अन्य औषधि एक निजी कंपनी खरीदने को तैयार है। छह माह में तैयार होने वाली अश्वगंधा, तुलसी, अकरकरा आदि औषधि स्थानीय स्तर पर बेची जाएंगी।
धान के मुकाबले चार गुना लाभ
राष्ट्रीय ग्रामीण एवं कृषि विकास बैंक (नाबार्ड) से प्रशिक्षित विष्णु कश्यप ने बताया कि अलग-अलग किसानों की जमीन को संयुक्त रूप से खेती के लिए तैयार किया गया है। एक एकड़ में 30 हजार रुपये का धान पैदा होता है। इस हिसाब से औषधीय खेती में चार गुना लाभ होगा। इसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता भी नहीं होती। बारिश के पानी से ही यह फसल तैयार हो सकती है।
उद्यानिकी विभाग ने मांगा 12 लाख का पैकेज
उद्यानिकी विभाग के अधिकारी टीआर दिनकर का कहना है कि फसल विविधता के लिए औषधीय खेती की शुरुआत, कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत है। इसे बढ़ावा देने के लिए 12 लाख का पैकेज राज्य शासन से मांगा गया है। बीज से लेकर उसकी बेहतर पैदावार से किसानों को अवगत कराया जाएगा। उधर, आयुर्वेद चिकित्साधिकारी टीआर राठिया का कहना है कि औषधि बनाने के लिए स्थानीय किसानों से उत्पाद लेने की अनुमति मांगेंगे
किस उत्पाद पर कितने की पैदावार
शतावरी- तीन लाख रुपये प्रति एकड़
श्योनाक- 45 हजार रुपये प्रति एकड़
काली मिर्च- दस हजार रुपये प्रति बेल
अश्वगंधा- एक लाख रुपये प्रति एकड़