Friday, April 19, 2024
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इस जांबाज 16 साल की लड़की ने अंग्रेजों के कैंप में मचाई थी हलचल, नेताजी भी थे हैरान

आजादी के इतने साल गुजर चुके हैं। मौजूदा पीढ़ी आजाद हिंदुस्तान पर गर्व करती है। मगर बस दुःख इस बात का होता है कि वो स्वतंत्रता दिवस या फिर गणतंत्र दिवस के मौके पर ही इस देश की खुली फिजा की अहमियत पर ध्यान देती है। इन मौकों पर ही उन्हें इस देश के शहीद याद आते हैं। मगर विडंबना ये है कि हम इस देश के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर देने वाले सभी जांबाजों के बारे में जानते तक नहीं हैं।

गुमनाम क्रांतिकारियों की फेहरिस्त में सरस्वती राजमणि का नाम भी शामिल है। नेताजी सुभाष चंद्र को प्रभावित करने वाली यह बच्ची अंग्रेजों के लिए किसी काल से कम नहीं थी। मगर अपने ही देश में इन्हें वो नाम और सम्मान न मिल सका।

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सरस्वती राजमणि का परिवार
सरस्वती राजमणि का जन्म 1927 में रंगून में एक तमिल भाषी भारतीय परिवार के यहां हुआ था। उनके पिता त्रिची से बर्मा चले गए। वहां वो आर्थिक रूप से काफी संपन्न थे। वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदद करने की हर संभव कोशिश कर रहे थे। ये वो समय था जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना (इंडियन नेशनल आर्मी) के निर्माण में सक्रिय थे।

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सरस्वती राजमणि की गांधी से मुलाक़ात
सरस्वती जब दस साल की थी तब महात्मा गांधी का उनके घर आना हुआ था। उस बच्ची को देखकर गांधी हैरान रह गए थे। दरअसल वो छोटी सी बच्ची बंदूक लेकर शूटिंग की प्रैक्टिस कर रही थी। जब अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले गांधी ने बच्ची का ये कारनाम देखा तो उसे ये रास्ता छोड़ने के लिए कहा और बताया कि हिंसा से किसी का लाभ नहीं होता है। इस पर दस वर्षीय सरस्वती जवाब देती हैं कि घर के लुटेरों को मार गिराया जाता है। अंग्रेज भी हमारे देश में लुटेरे बनकर आए हैं। उन्हें गोली मारना जरुरी है। लड़की की प्रतिक्रिया सुनकर महात्मा गांधी अवाक रह गए

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नेताजी से हुई प्रभावित, स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ी रुचि
एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस रंगून में भारतीय स्वतंत्रता सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे। नेताजी ने लोगों से इस जंग के लिए आर्थिक रूप से मदद देने की अपील की। उस सम्मेलन में एक 16 वर्षीय लड़की भी मौजूद थी जो नेताजी के भाषण से इतनी ज्यादा प्रभावित हुई कि उसने अपने सारे आभूषण दान में दे दिए। जब नेताजी को जानकारी मिली की एक लड़की अपने सारे गहने यहां देकर चली गई है तब नेताजी स्वयं उन आभूषण को लेकर उसके घर पहुंचे। नेताजी ने जब उन गहनों को वापस लौटाया तब सरस्वती ने उन्हें लेने से साफ इंकार कर दिया। उसने कहा कि ये गहने मेरे हैं और मैंने अपनी इच्छा से इन्हें देश की आजादी की लड़ाई में सहयोग के तौर पर दिए हैं। उस लड़की का दृढ़ संकल्प देखकर नेताजी बहुत प्रभावित हुए।

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नेताजी के साथ काम करने का मौका
सरस्वती का देश के प्रति प्रेम और समर्पण देखकर नेताजी काफी खुश हुए। नेताजी ने उन्हें इंडियन नेशनल आर्मी के ख़ुफ़िया विभाग में शामिल किया। सरस्वती राजमणि ने 16 साल की उम्र में भारत के लिए एक युवा जासूस के रूप में अपना स्वतंत्रता संघर्ष शुरू किया। उन्होंने एक महिला होकर कम उम्र में एक बड़ी जिम्मेदारी निभाई

सेना में महत्वपूर्ण काम
सरस्वती वेश बदलकर लड़के का रूपधरकर अंग्रेजों के यहां काम करती थीं। उनके साथ आईएनए के अन्य सदस्य भी थे। इनका काम ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करके नेताजी तक पहुंचाना था। इन लोगों को ट्रेनिंग में ही ये बता दिया गया था कि अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने पर इन्हें स्वयं को गोली मार लेना होगा ताकि दुश्मनों को और कोई जानकारी हासिल न हो सके

साथी को बचाने के लिए सरस्वती का बड़ा फैसला
नेताजी द्वारा भेजे गए जासूसों में से एक सदस्य अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया। वह खुद को गोली मारने का काम नहीं कर सकी। ऐसी स्थिति में सबको इस बात की चिंता थी कि अंग्रेज उसे प्रताड़ित करेंगे और उनके मिशन के बारे में जानकारी हासिल कर लेंगे। इस मौके पर सरस्वती ने अपने साथी को छुड़ा लाने का फैसला किया। वो एक नृत्यांगना का रूप धरकर अंग्रेजों के कैम्प में पहुंच गई। सरस्वती ने वहां मौजूद सभी लोगों को नशीला पदार्थ खिलाकर बेहोश कर दिया और फिर अपने साथी को लेकर वहां से निकल गई। मगर द्वार पर मौजूद एक सैनिक ने इन्हें देख लिया और उनपर गोली चलाई। वो गोली सरस्वती के पैर पर जा लगी। उनके चंगुल से बचने के लिए सरस्वती अपनी साथी को लेकर पेड़ पर चढ़ गई। वहां वो तीन दिन तक भूखे-प्यासे अंग्रेजों के सर्च ऑपरेशन के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। उसके बाद किसी तरह वो अपने कैम्प में पहुंच पाए। तीन दिन तक गोली लगे रहने के कारण सरस्वती को जीवनभर लंगड़ाकर चलना पड़ा। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें भारतीय राष्ट्रीय सेना का चीफ ऑफ स्टाफ नियुक्त किया गया।

आजादी के बाद का संघर्ष
नेताजी के प्रति उनकी अथाह भक्ति थी। वो एक ऐसे नेता रहे जिन्होंने कई युवाओं को प्रभावित किया और देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया। एक जासूस के तौर पर अहम योगदान देने वाली सरस्वती राजमणि ये जानती थीं कि उन्हें अन्य स्वतंत्रता सेनानियों जितनी पहचान नहीं मिल सकेगी। उस वक्त के अमीर खानदान में जन्म लेने वाली सरस्वती की जिंदगी गुमनामी के साथ गुजरी। काफी संघर्ष के बाद उन्हें पेंशन मिलनी शुरू हुई जिसे बाद में उन्होंने सुनामी पीड़ितों के राहत कोष में दान कर दिया। देश की इस बहादुर बेटी ने 13 जनवरी, 2018 को आखिरी सांस ली। देश के कई ऐसे जांबाज हैं जो आजादी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर देने के बाद भी शहीद नहीं कहलाए। लोगों को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने वाले इस देश में ही अनजान बनकर रह गए। उम्मीद है आने वाली पीढ़ी को ऐसे लोगों को जानने का मौका मिल सकेगा और उनके दिल में इनके प्रति सम्मान पैदा होगा।

SHUBHAM SHARMA
SHUBHAM SHARMAhttps://shubham.khabarsatta.com
Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.
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