सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या पर आमजन को सीख देता डॉ. रीना रवि मालपानी का लेख

By SHUBHAM SHARMA

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सुशांत के अशांत मन की कशमकश और सीख

सुशांत की मृत्यु एक उम्दा कलाकार और असीम संभावनाओं वाले व्यक्तित्व का अंत है। कैसा अनुभव रहा होगा उस क्षण का जब तुमने स्वयं अपनी खुशियों का अंत किया होगा, उस एक क्षण से पूर्व कितनी बार मौत को गले लगाया होगा, कितनी गहरी वेदना हुई होगी, क्या मानसिक बौखलाहट रही होगी और कैसा मानसिक दृश्य होगा गहरे मर्म का, कैसे इतना कठोर निर्णय लिया होगा और कितनी गहरी होगी तुम्हारे दर्द की तीव्रता जिसकी थाह पाना मुश्किल था। शायद उस समय कोई तुम्हारा सखा, शुभचिंतक या राजदार होता जो तुम्हारी वेदना, संवेदना और विषाद को बाँट लेता तो आज यह दु:खद परिस्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।

“क्यो किया सुशांत तुमने खुद को शांत, तुम्हारे जाने से हम भी है मानसिक रूप से अशांत।

यूं रण छोडकर भागना नहीं है किसी समस्या का समाधान, तुमने आत्महत्या अपनाकर बदला विधि का विधान।”

अवसाद और विषाद का चरम व्यक्ति को इस ओर धकेलता है, जो बेहद ह्रदय विदारक होता है। पैसा, दौलत और शोहरत हमारी खुशियाँ निश्चित नही करती। जीवन में इतने भी एकांत, संवादहीनता को न अपनाओ की तुम अपना मनोभाव भी अपने सखा और परिवारजन को न बता सको। हमको जीवन शैली में छोटे-छोटे आनंद को महसूस करना होगा, हमे हर्ष-विषाद को बराबरी से स्वीकारना होगा। हमारे धर्म शास्त्रों में कठिनाइयों से संघर्ष करना और उस पर विजय पाना सिखाया गया है। खंगालो अपने इतिहास को, पुरातन धर्म को जिसमे यह कहा गया है की धार्मिक स्थलों का भ्रमण, ईश वंदना, योगाभ्यास, ध्यान, प्राणायाम या फिर कोई भी सृजनात्मक कार्य जो रुचिकर हो उसे जीवन का हिस्सा बनाये, आशावादी नजरिया अपनाए। नकारात्मकता को लंबे समय तक अपने मस्तिष्क में विराम न दे।

सुशांत के जाने से परिवारजन और बहुत से प्रशंसक मानसिक रूप से अशांत हुए है, क्योकि उनके लिए सुशांत एक उगता हुआ सितारा था। उनके परिवारजन ने सुशांत के इंजीनियर होने के बावजूद भी उनके अभिनय को सहर्ष स्वीकार किया था। इस घटना को मैं क्या कहूँ समय की क्रूरता, सुशांत की विवशता या वर्ष 2020 का त्रास। आज संसार की सबसे कीमती वस्तुओं में सहयोग, विचारो एवं सुख-दु:ख का आदान-प्रदान आता है। संभालिए टूटे हुए बिखरे मन को, बढ़ाइए अपनी मानसिक पूँजी। यूं रण छोडकर मत जाइए संसार से। कड़े संघर्ष के बाद एक मुकम्मल मुकाम हासिल करना और एक क्षण में सब कुछ खत्म करना यह तो स्वयं के साथ न्याय नहीं है।

आज समाज का दायित्व है कि हमे इस कड़ी को थामना होगा, जिसमे जिया खान, दिव्या भारती, गुरु दत्त, परवीन बाबी इत्यादि भी शामिल रहे। ऐसी भी शांति को न अपनाओ कि जीवन में तुम्हारी चीख, आँसू, पीड़ा, तड़प कोई सुन भी न पाए। कृष्ण ने महाभारत में कहा था कि किसी भी व्यक्ति का जीवन चुनौतियों के बिना पूर्ण नहीं है। जीवन में सब कुछ हमारे मन के अनुरूप नहीं होता। हमे अपने साथ हुए अन्याय, अपमान और अधिकारों के लिए लड़ना होगा यहीं जीवन का सत्य है।

हमें अपने पीड़ा को अपनों से साझा करना होगा, घुट-घुट कर अपनी देह त्याग करना सही नहीं है। अवसाद को दूर करने के लिए खेलना, पढ़ना, घूमना, अपने पसंद का संगीत, फिल्म जिस भी कार्य में आंतरिक खुशी महसूस करते हो वह अवश्य करें। कुछ प्रेरक एवं उत्साहवर्धक कथाओं को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए। सकारात्मक सोच एवं रचनात्मक कार्यों में अपनी ऊर्जा लगाएँ। जीवन में नवीन प्रारम्भ किसी भी क्षण और कहीं से भी किया जा सकता है।

डॉ. रीना रवि मालपानी

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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