अतुल मलिकराम ने आखिर क्यों कहा “काला अक्षर इंसान बराबर”

SHUBHAM SHARMA
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अतुल मलिकराम ने आखिर क्यों कहा "काला अक्षर इंसान बराबर"

कल शाम खुद के साथ समय बीता रहा था, तो मन में ख्याल मुहावरों के आने लगे, जिनका उपयोग हम इंसान अक्सर अपनी बात का वजन बढ़ाने के लिए किया करते हैं। एकाएक ही मन अलग दिशा में चला गया कि इंसान अपनी बात को मजबूत करने के लिए बेज़ुबान तक को भी नहीं छोड़ता है।

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ऐसे हजारों मुहावरे भरे पड़े हैं, जिन्हें बोलते समय इन निर्दोषों को हम क्या कुछ नहीं कह जाते हैं। और आज से नहीं, कई वर्षों से ही कहते चले आ रहे हैं।

फिर मन में एक टीस उठी कि जिन जानवरों की आँखों में से कई दफा आँसू छलक पड़ते हैं, तो उन्हें ठेस भी तो पहुँचती ही होगी न, बोल नहीं सकते हैं तो क्या, भावना तो उनमें भी हैं न…..

काला अक्षर इंसान बराबर

एक जानवर, जिस पर हम दिन भर में एक बार तो टिप्पणी कर ही डालते हैं, वह है भैंस। जिसकी लाठी, उसकी भैंस; अक्ल बड़ी या भैंस; गई भैंस पानी में; भैंस के आगे बीन बजाना; काला अक्षर भैंस बराबर और भी न जाने क्या-क्या।

ताकत से अपना काम बना लेने वाले की तुलना भैंस से, शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि की अधिकता की तुलना भैंस से, बना बनाया काम बिगड़ने की तुलना भैंस से, निरर्थक काम की तुलना भैंस से, अनपढ़ की तुलना भैंस से, मुझे आज तक समझ नहीं आया कि भैंस ने इंसान का बिगाड़ा क्या है।

दैनिक जीवन में गाय से अधिक मात्रा में भैंस के दूध का सेवन करता है, यह देखते हुए मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है इंसान।

ज़रा सोचिए, हम और आपकी तरह यदि ये बेज़ुबान भी बोल पाते और बदले में इंसान को कुछ यूँ उपाधि दे जाते कि काला अक्षर इंसान बराबर, तो कैसा जान पड़ता। एक पढ़े-लिखे व्यक्ति को कोई अनपढ़ कहेगा, जो ज़रा सोचकर देखिए कि कैसा लगेगा।

नज़दीक से मदमस्त गुजरती भैंस यदि आपको बेवजह कहती हुई निकल जाती कि भाई! ज़रा बताना, अक्ल बड़ी या इंसान। मुझे तो लगता है कि हमारे क्रोध का तो ज्वालामुखी ही फूट पड़ता।

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद; अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे; हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और; ऊँट के मुँह में जीरा; घोड़ा घास से दोस्ती करेगा, तो खाएगा क्या; अपना उल्लू सीधा करना; घोड़े बेचकर सोना; अपने मुँह मियाँ मिट्ठू; अक्ल के घोड़े दौड़ाना; नाक पर मक्खी न बैठने देना; धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का; कुत्ते की दूम, टेढ़ी की टेढ़ी; मगरमच्छ के ऑंसू बहाना; अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है; कुत्ते को घी हजम नहीं होता और भी न जाने कितने ही मुहावरे हैं, जो बेज़ुबानों को इंसान से नीचे दिखाने का काम करते हैं।

इंसान हमेशा अपने से कमजोर पर ही आज़माइश करता है। मैं ऐसा मानता हूँ कि इंसान के अलावा दिखावा करने का अवगुण किसी में नहीं होता है, फिर भी हाथी को बदनाम कर रखा है यह कहकर कि उसके खाने के दाँत और है व दिखाने के और।

मेरे मायने में तो मगरमच्छ के आँसू मुहावरे में भी फेरबदल करने की जरुरत है, क्योंकि इंसान से अधिक दिखावटी आँसू मुझे नहीं लगता कि कोई अन्य प्राणी बहाता होगा।

जाने-अनजाने में एक इंसान के मुँह से किसी दूसरे इंसान के लिए अपशब्द निकल जाते हैं, तो वह रौब झाड़ते हुए यह तो कह ही देता है कि तू जानता है मैं कौन हूँ। लड़ाई-झगड़ा कर या कॉलर पकड़कर उसे इस बात का एहसास तो दिला ही देता है कि उस शख्स ने गलत किया है।

खुद को सबसे ऊपर समझने वाले इंसान को देखते हुए मैं तो कहता हूँ कि अच्छा ही हुआ जो प्रभु ने इन जानवरों को जुबां नहीं दी, नहीं तो उनके लिए हमारे द्वारा अपशब्दों का प्रयोग किए जाने पर जब वे अपनी ताकत की आज़माइश हम पर करते न, तो तमाम मुहावरे उनके चार पैरों के नीचे कुचल जाते। यकीन मानिए उनके पास जुबां नहीं है, लेकिन वे समझते सब हैं। तो कोशिश करें कि अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए अन्य प्राणी को नीचे न गिराएँ।

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Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
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