क्या वाकई जाति व्यवस्था के पक्षधर थे महात्मा गांधी

SHUBHAM SHARMA
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लेखक: सतीष भारतीय

सतीष भारतीय : महात्मा गांधी भारतीय संदर्भ में एक ऐसा नाम है जिसकी कीर्ति समूचे विश्व में महज इसलिए ही नहीं बेतहाशा मान्य है कि वह सत्य और अहिंसा की बात करते थे बल्कि इसलिए भी कीर्तिमान् है कि वह सत्य और अहिंसा की राह पर जीवनपर्यंत या जीवन के अंततम  क्षण तक चलते रहे तथा वह विश्व में भारत से सर्वाधिक ख्याति प्राप्त  महापुरुष थे और उन्होंने जो अपना तमाम जीवन मुल्क पर न्योछावर कर दिया वह सत्ता की चाह के लिए नहीं वरन् देश की स्वाधीनता की प्राप्ति के लिए था तथा निसंदेह महात्मा गांधी भारत के अर्जमन्द युग पुरुष थे जिनके अवदान को भारत कभी भुला नहीं सकता है।

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महात्मा गांधी और डॉ भीम राव आंबेडकर साहब के बौद्धिक संबंधों पर आधारित हाल ही मैं मैंने प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय द्वारा लिखित उनकी पुस्तक “एक था डॉक्टर एक था संत” का अध्ययन किया जिसमें जाति व्यवस्था पर महात्मा गांधी के विचारों का जिक्र किया गया जिन्हें पढ़कर मस्तिष्क में प्रजनित हुआ कि इस विषय पर एक लेख लिखना चाहिए और उसी कड़ी में यह मैं लेख लिख रहा हूं।

वैसे तो जाति व्यवस्था को लेकर भारत में प्रथक-प्रथक उच्च कोटि के विद्वानों ने अपने-अपने मत दिये है और जाति व्यवस्था को किसी ने नकारा है तो किसी ने भारतीय समाज की विशेषता बताया है। 
लेकिन मेरे अनुसार जाति व्यवस्था किसी भी व्यक्ति के समूचे विकास में  इसलिए बाधक है क्योंकि पूर्वकालीन कल्प से जातियों में किसी को श्रेष्ठ और किसी को महत्त्वहीन समझा गया है तथा जाति व्यवस्था के अस्बाब से एक इन्शान ने दूसरे इन्शान को ना सिर्फ मुलाजिम बनाया बल्कि प्रताड़ित भी किया है और जाति व्यवस्था से मनुष्यता को निरादृत करने वाली घटनाएं भी सामने आयीं हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि मनुष्य के यथोचित विकास में जाति व्यवस्था व्यवधान है

वहीं विकिपीडिया में दिया गया है कि राजनैतिक मत के अनुसार जाति प्रथा उच्च के ब्राह्मणो की चाल थी। 
अब बात गांधी जी द्वारा जाति व्यवस्था पर दिये गये विचारों पर करते हैं तो महात्मा गांधी का विश्वास था कि जाति भारतीय समाज की प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती है उन्होंने 1916 में महाराष्ट्र के एक मिशनरी सम्मेलन के दौरान अपने भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र जो जाति व्यवस्था उत्पन्न करने में सक्षम हो उसकी अदभुत सांगठनिक क्षमता को नकार पाना संभव नहीं है और जाति का व्यापक संगठन ना केवल समाज की धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करता है बल्कि यह राजनैतिक आवश्यकताओं को भी परिपूर्ण करता है जाति व्यवस्था से ग्रामवासी न केवल अपने अंदरूनी मामलों का निपटारा कर लेते हैं बल्कि इसके द्वारा वे शासक शक्ति या शक्तियों द्वारा उत्पीड़न से भी निपट लेते हैं।

यदि हम गांधीजी के वर्णव्यवस्था संबंधी विचारों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि गांधी जी वर्णव्यवस्था के समर्थक थे उनके अनुसार वर्णव्यवस्था मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं बल्कि प्राकृतिक या ईश्वरीय व्यवस्था है। आगे उन्होंने 1921 में अपनी गुजराती पत्रिका ‘नवजीवन’ में लिखाकि मेरा विश्वास है कि यदि हिंदू समाज अपने पैरों पर खड़ा हो पाया है तो वजह यह है कि इसकी बुनियाद जाति व्यवस्था के ऊपर डाली गई है।

जाति का विनाश करने और पश्चिमी यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था को अपनाने का अर्थ होगा कि हिंदू अनुवांशिक पैतृक व्यवसाय के सिद्धांत को त्याग दें जो जाति व्यवस्था की आत्मा है यदि हर रोज किसी ब्राह्मण को शुद्ध में परिवर्तित कर दिया जाए और शूद्र को ब्राह्मण में तो इससे अराजकता फैल जाएगी। इसके साथ “नवजीवन” में गांधी जी के संपादकीय लेख में  उनका विचार है कि जाति व्यवस्था नियंत्रित तथा मर्यादित जीवन भोग का ही दूसरा नाम है।

प्रत्येक जाति अपने जीवन में खुशहाल रहने के लिए ही सीमित है, वह जातीयता की सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकती है। गांधी जी के इन शब्दों से आप तसव्वुर कर सकते हैं कि वह जाति व्यवस्था पर क्या सोचते थे। लेकिन गांधी जी के जाति व्यवस्था के प्रति इन विचारों से यह प्रमाणित होता है कि वह जाति व्यवस्था के प्रशंसक थे हालांकि ध्यातव्य कि गांधी जी यह भी मानते थे कि जातियों में ऊंच-नीच की श्रेणी नहीं होना चाहिए सभी जातियों को समान माना जाना चाहिए और अवर्ण जातियों व अति शूद्रों को वर्ण व्यवस्था के भीतर लाना चाहिए।

एक ओर जाति व्यवस्था पर गांधी जी के विचारों से स्पष्ट होता है कि वह जाति व्यवस्था के समर्थक थे लेकिन इसको नजरअंदाज कर दिया जाए तो वहीं दूसरी ओर गांधी जी यह भी मानते थे कि जातियों में ऊंच-नीच की श्रेणी नहीं होना चाहिए तथा सभी जातियों को समान माना जाना चाहिए और यदि ऐसा होता कि सभी जातियों को समानत्व प्राप्त होता तथा जातियों में ऊंच-नीच की भावनाएं ना होती तो शायद भारतीय संदर्भ में जातिवाद शब्द का एक मुनासिब अर्थ होता एवं राष्ट्रीय एकजुटता बरकरार रहती तथा हमऔर अतीव गर्व से कहते कि हम भारतीय हैं।
लेखक: सतीष भारतीय

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Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
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