दिवाली फेस्टिवल: भारत में कई त्योहार मनाए जाते हैं। हर त्योहार में उत्साह का माहौल देखा जा सकता है। लेकिन दिवाली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें पूरे देश में रोशनी का माहौल होता है। दिवाली आम आदमी से लेकर देश के कुलीन वर्ग तक हर कोई मनाता है।
मुगल काल के दौरान दिवाली के बारे में कई इतिहासकारों और यूरोपीय यात्रियों द्वारा ‘जश्न-ए-चरगा’ (दिवाली) का उल्लेख किया गया है।
आज आप मुगल भारत में कैसे मनाए गए? बाबर से बहादुर शाह द्वितीय तक दिवाली कैसे मनाई गई? हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं…
दिवाली पर हिंदू-मुस्लिम एक साथ
1904 में एंड्रयू नाम के एक अंग्रेज यात्री ने दिल्ली का दौरा किया जब वह मुंशी जकाउल्लाह से मिले। मुंशी ज़कउल्लाह ने लाल किले के अंदर कल्याण और रहन-सहन की स्थिति देखी थी।
एंड्रू ने इस बारे में विस्तार से जानकारी ‘ दिल्ली के जकाउल्लाह ‘ किताब में दी है । “मुगल काल के दौरान, सभी हिंदू और मुसलमानों ने धार्मिक त्योहारों को एक साथ उत्साह के साथ मनाया। सभी एक-दूसरे के त्योहारों में खुशी-खुशी भाग ले रहे थे।’ एंड्रयू ने अपनी किताब में यह लिखा हुआ है।
लाल किले को कैसा था सजाया ?
दीपावली पर्व के आने से पहले ही कई महीने पहले लाल किले में तैयारियां शुरू हो गई थीं। आगरा, मथुरा, भोपाल, लखनऊ शहरों से वयोवृद्ध हलवाई बुलाए गए। दिवाली के मौके पर मिठाई बनाने के लिए गांवों से देशी घी मंगवाया गया।
महल के अंदर और बाहर दोनों तरफ दीयों को सजाया गया था। दीवाली के त्योहार की शुरुआत मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में आगरा से हुई थी। वहीं शाहजहां ने भी दीपावली को बड़े उत्साह से मनाया। इस अवधि के दौरान ‘आकाश दिवा’ की स्थापना शुरू हुई।