नई दिल्ली। हिंदी के मशहुर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद को आज किसी भी पहचान की जरूरत नहीं है। हिन्दी साहित्य में उन्हें कहानियों का सम्राट माना जाता है। हिंदी साहित्य को पहचान दिलाने में उनका बहुत बड़ा हाथ है। अपने लेखन से सभी का दिल जीतने वाले प्रेमचंद की आज जन्मतिथि है। धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद बने प्रख्यात लेखक का जन्म बनारस के लमही में आज ही के दिन साल 1880 में हुआ था।
वहीं, उनकी मृत्यु आठ अक्टूबर 1936 में हुई थी। इस खास मौके पर हम आपको उनके बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं। प्रेमचंद का परिचय प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1980 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे।
उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा फारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।”छोटी उम्र में माता-पिता के देहांत के कारण उनका शुरुआती जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा।
उनके पिता डाकखाने में मामूली नौकर थे। उन्होंने बचपन से ही आर्थिक तंगी का सामना किया। यबी उनकी लेखनी में दिखा। धनपतराय से प्रेमचंद बनने का सफर काफी दिलचस्प है। 8 साल की उम्र में उनकी मां दुनिया छोड़ कर चली गई थीं। उनकी मां के देहांत के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। इसी वजह से उन्हें मां का प्रेम कभी मिल ना सका, मिला तो सौतेली मां का व्यवहार। वो गरीबी में ही पले।
उनके जीवन में नई परेशानी तब शुरू हुई जब उनके पिता ने उनकी शादी कम उम्र में करवा दी थी। 15 साल की उम्र में विवाद होने के 1 साल बाद उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद से उनपर ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। गरीबी आलम ये था कि उनको खर्चा चलाने के लिए उन्हें अपना कोट तक बेचना पड़ा था। इतना ही नहीं घर के खर्च चलाने के लिए उन्होंने अपनी पुस्तकें भी बेच दी। premchand3 प्रेमचंद ने इन कठिन परिस्थियों में भी कलम का दामन नहीं छोड़ा।
उन्हें पढ़ने-लिखने का काफी शौक था। वो 10वीं तक पढ़ें हैं। वो पढ़-लिख कर वकील बनना चाहते थे लेकिन गरीबी के चलते उन्हें पढ़ाई रोकनी पड़ी। गरीबी की वजह से उनकी पहली पत्नी छोड़ कर चली गई। फिर उन्होंने साल 1905 में दूसरी शादी की। उन्होंने दूसरी शादी एक विधवा स्त्री शीवरानी देवी से की थी। इसके बाद वो साहित्य की सेवा में लग गए। उन्होंने 5 कहानियों का संग्रह ‘सोज़े वतन’ लिखा, जो 1907 में प्रकाशित हुआ था।
ये उनका उर्दू कहानियों का पहला संग्रह था, जो उन्होंने ‘नवाब राय’ के नाम से छपवाया था। इसके बाद उन्होंने खूब लिखा। लगभग तीन सौ कहानियां और लगभग आधा दर्जन प्रमुख उपन्यास और एक नाटक भी लिखा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में लिखा था। उन्होंने ज्यादातर नारीवाद, मजदूर, किसान, पूंजीवाद, गांधीवाद, पत्रकारिता, बेमेल विवाह, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन, धार्मिक पाखंड, आदि विषयों पर ज्यादा लिखा।