ध्यान आकर्षित करने वाली एक ध्वनि

SHUBHAM SHARMA
By
SHUBHAM SHARMA
Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena...
8 Min Read

छत्तीस वर्षीय फिनियन मकैन ने दो प्रकार के जीवन चारित्रों को एक साथ संभाल कर रखा हुआ है, जैसे हार्वर्ड में एक सामवेद के विद्वान के रूप में और दूसरा एक अच्छे संगीतकार के रूप में

 उनकी प्रथम सीडी के प्रदर्शन को पुश किंग्स कहा जाता है और उनका बैंड सभी बीटल्स प्रभावित बैंडों में से सबसे अच्छे के रूप में उभरकर बाहर आए। अब तक उनके द्वारा तीन एलबम और १० एकल जारी की गई हैं। उनकी आध्यात्मिक रूची उन्हें लगातार भारत के वैदिक विद्वानों के संपर्क में लाई। वह बताते हैं कि- “एक माप में आवाज के उतार-चढ़ाव को, जिस समय मंत्रों का जाप किया जाता है, तो उस समय उसकी तुलना संगीत के सुरों के साथ कि जा सकती है। “रंजेनी ए सिंह, हाल ही में पंजाब, केरल में आयोजित वैदिक अग्नि अनुष्ठान के मौके पर  अथिराथरम की एक उप-वृत्ति पर चर्चा करते हैं।

क्या है, जिसनें वेदों में आपकी रुचि बनाई है?

मेरा वेदों के साथ अनुबंध सबसे ज्यादा संगीत के माध्यम से हुआ है। चार साल की उम्र से, मुझमें रॉक ‘एन’ रोल करने का जुनून सवार था। मेरा भाई और मैं हर बीटल्स गीत गाते थे। हार्वर्ड में, मुझें संस्कृत विभाग में वेदों और भारतीय अध्ययन के लिए परिचित किया गया था। वैदिक जप शैली ने मुझे मंत्र-मुग्ध कर दिया। यह वह है, जब मुझे पता चला कि- “भारतीय शास्त्रीय संगीत विशेष रूप से कर्नाटक के बारे में, जिसकी जड़े साम वेद में हैं, अतः यह रिंग वैदिक भजनों के अनुकूल है, जिन्हें संगीत जप करने के लिए अत्यधिक स्पष्ट रूप में स्थापित किया गया हैं।” “मंत्रों का जाप करते हुए, एक माप में आवाज में उतार-चढ़ाव करना संगीत की संकेत पद्धति के समान है।“



हालांकि, संगीत की वृद्धि में, यह वेदों के निर्बाध रहने की एक परंपरा है, जिसनें मुझे अधिक जानने के लिए प्रेरित किया। हार्वर्ड में, मैनें महसूस किया कि- वेदों को पुस्तकों के रूप में जानने का हमारा तरीका वास्तव में प्राचीन मौखिक प्रदर्शन परंपराओं को प्रतिबिंबित नहीं करता है। उदाहरण के लिए हम और बहुत सारे लोग यूनानी कवि होमर को एक संगीतकर के रूप में पसंद करते हैं, उन्होनें साधारण संगीत की एक माप में लम्बी कहानी गायी। और जो कहानी उनके दिमाग में थी, वे तत्कालिक उन्हीं की तरह आगे चली गई। जब मैं भारत आया, मैनें महसूस किया कि- वहाँ अत्यधिक प्रचीन ग्रंथ हैं, जिन्हें आपने ऐतिहासिक दुर्घटनाओं के बावजूद भी यूरोप की अपेक्षा में, सुरक्षित रखा है।

तो आप कहेंगे कि- “मौखिक परंपराओं के कारण, वेदों का अस्तित्व बना हुआ है?” 

समय के साथ, उच्चारण और धुन परिवर्तित हो सकती है, लेकिन वहाँ एक सार है, जो हमेशा अपरिवर्तित बना रहता है। जिसमें केरल के नंबूदिरीस एक महत्वपूर्व भूमिका निभाते है, क्योंकि इनका संबंध प्रचीन गायकों के गीतों से होता है, जो ‘मौखिक प्रदर्शन परंपरा’ के माध्यम से उन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच, अभिभावकों के माध्यम से बच्चों में या अध्यापकों के माध्यम से शिष्यों में जीवित बनाए रखते हैं। इसी वजह से,वेद एक निश्चित मौखिक पाठ के रूप में और एक सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठापित हो गए। जब मैनें नंबूदिरी परंपरा की प्राचीन मौखिक परंपरा के निरंतर प्रसारण के बारे में सुना,तो यह वास्तव में बहुत अच्छी और खोज के लिए असंभव दिखाए देती थी।

इसके अलावा, उन्होनें पिछलें कई दिनों में, यज्ञों में जैसे- सोमयज्ञों और अथिराथरम में बिना रुके लगातार जप किया, यह मानव की सहनशीलता का एक परीक्षण है, जिसमें वे स्मृति से और अपनी उच्च पकड़ के साथ मंत्रों का जप करते हैं, उन्हें ये सब गाने के लिए , जबरदस्त फेफड़ों की शक्ति की आवश्यकता होती है। उन्होनें बहुत शानदार तरीके से, विस्तृत परंपराओं का प्रसारण किया, जिसे मैं दैहिक पाठ पुकारना पसंद करता हूँ- जिसमें “पण्डित किसी भी बिन्दु को निर्दिष्ट करने के लिए मुद्राओं का उपयोग करते हैं,ना की लिखित पाठ का।“ वह अपने शरीर का उपयोग पाठ को सांकेतिक शब्दों में बताने के किए करते हैं। परंपराओं के अस्तित्व के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है, कि- जब छात्रों को वेद पढ़ाया जाता है, तो शिक्षकों को उस समय उनकें मस्तिष्क को स्थिर रखना चाहिए और उन्हें एक विशिष्ट व्यवहार में रूपांतरित करना चाहिये। यदि उन्हें इस तरह से सिखाया जाता है, तो भजनों को उनके शरीर में सांकेतिक शब्दों के माध्यम से मिलाया जा सकता है।

क्या आप ऐसा कहना पसंद करेंगें कि- ध्वनि जीवंत भर निर्मित होती है

“ध्वनि अनन्त है।” मैं सोचता हूँ कि- “जब तक इस धरती पर मनुष्य रहें, तब तक वें बातें करते रहें और गाना गाते रहें। उस संबंध में, ध्वनि अनन्त हो सकती है। मैं इसे एक बड़े लौकिक दृष्टिकोण से नहीं देखता हूँ।“

क्या मंत्र ध्वनि का विज्ञान है

पारंपरिक अर्थों में, ऐतिहासिक भाषाई व्युत्पत्ति के लिए मंत्र, मन है, जिसका अर्थ आपके विचार है और जब आप त्रा को प्रत्यय के रूप में जोड़ते हैं, तो यह चिंतन के लिए एक साधन बन जाता है। मंत्र अपने दिमाग का उपयोग करने के लिए एक साधन है। हांलाकि यह एक व्यापक परिभाषा है, लेकिन कम से कम, यह भारत में मंत्रोच्चार के लंबे इतिहास के स्पष्टीकरण में हमारी सहायता करती है, जो बहुत ही विविध और विचित्र है,लेकिन वहाँ इसमें हमेशा एक निरंतरता है। आपके पास एक व्यक्ति है, जो ध्वनि का एक दृश्य उत्पन्न करता है और मंत्र के साथ-साथ श्रोता पर भी एक मानसिक प्रभाव उत्पन्न करता है। मंत्र का विचार किसी एक की, याचना के विचार के लिए एक साधन है।

भारत-विद फ्रिट्स स्टाल ने कहा है कि- मंत्रों का कोई अर्थ नहीं है। क्या आप इससे सहमत हैं? 

स्टाल ने काफी हद तक सामवेद और विशेष रूप से अनिरूकता गण या विशेष रूप से ऊऊऊ और आआआ की ध्वनि, अनाभिव्यक्त जप को आधार मानकर अपने तर्क दियें हैं। उस दृष्टिकोण से, आपको स्वीकार करना चाहिये कि- “वे वो शब्द नहीं हैं, जिनका कोई अर्थ निकलता हो, भाषा  अभिव्यक्ति का एक तरीका है। हम सभी जानते हैं कि- “जब हम ‘ओम नमः शिवाय’ कहते हैं, तो इसका एक अर्थ होता है।“ वास्तविकता किसी भी एक सिद्धांत या एक लेखांकन से अधिक जटिल है। आप मंत्र का वर्णन किसी भी एक संकीर्ण शब्द में नहीं कर सकते हैं। और यह हमेशा सच होता है। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिये कि- “वह मुख्य रूप से वैदिक मंत्रों के इन दृष्टिकोण के संदर्भ में बहस कर रहे थे।“ और उस संदर्भ में, वे ऐसा सामान्य रूप से पहले संस्कृत विद्वानों द्वारा दिए गए तर्क जैसे कि- “मंत्रों का प्रयोग लोगों के बीच में भाषा की तरह, एक सामान्य संप्रेषण के लिए नहीं किया जा सकता है“ को याद दिलाने के लिए कर रहे हैं। एक संकीर्ण दृष्टिकोण में, वे किसी भी प्रकार का अर्थ नहीं प्रदान करते हैं। वहाँ तर्क करने के लिए कुछ हैं। मैं स्टाल से पूरी तरह से सहमत नहीं हो सकता हूँ, लेकिन मैं इस तर्क की तरफ एक सहानुभूति रखता हूँ, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण अवलोकन है और जो मौखिक कला की जटिलता पर प्रकाश डालती है।

क्या आपके वैदिक अनुसंधान ने आपके संगीत को प्रभावित किया है

ठीक है- कभी-भी, कभी नहीं कहते हैं! वेदों के अध्ययन ने मुझे अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है, विशेष रूप से जब मैं गीत और गीत के बोल लिखता हूँ। इन प्राचीन परंपराओं के अध्ययन ने भी मुझे ब्लू आईज़ गाने को सीखने के लिए अत्यधिक प्रेरित किया और जिसे मैनें ‘रॉक एन रोल’ की विरासत में शामिल किया और इसकी उत्पत्ति के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त की। मैं भविष्य में जल्द ही साम वेद का एक रीमिक्स करने की योजना करता हूँ।यह आध्यात्मिकता और भारतीय दर्शन को मिश्रित करने का एक अच्छा तरीका है, जो पश्चिमी संगीत की मुख्यधारा में भरतीय दर्शन को लाती है।


Share This Article
Follow:
Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *