पंडित जवाहरलाल नेहरू की कल यानी बुधवार को पुण्यतिथि है। ऐसे में उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करना वाजिब है। उन्होंने भारत के नेतृत्व की बागडोर तब संभाली, जब देश भुखमरी, गरीबी और अशिक्षा जैसी महामारी की स्थिति से गुजर रहा था। उन्होंने देखा कि विज्ञान और तकनीकी ही है जो भारत को इससे उबार सकती है। इसलिए उन्होंने गांधी के हिंदू स्वराज मॉडल को नकारते हुए विज्ञान तकनीक के साथ विकास की बात को रखा और भारत ने पहली बार दुनिया की कदमताल से कदम मिलाए। आज जो भारत सामाजिक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में उभरकर सामने आया यह भी नेहरू की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। यह मानना है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संतोष सिंह का।
नेहरू जी ने न कोई सीमा निर्धारित की और न ही समझौते की गुंजाइश रखी
डॉ. संतोष सिंह कहते हैं कि इस विकास क्रम में नेहरू जी ने न कोई सीमा निर्धारित की और न ही समझौते की गुंजाइश रखी। बस साफ़ नजरिए के साथ आगे बढ़ते रहे, जिसने भारत को सामाजिक और आर्थिक रूप से परिवर्तित कर दिया और वह विकासशील देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ । उन्होंने अपने कार्यकाल में 30 रिसर्च सेंटर 5 आइआइटी की स्थापना की। इसका परिणाम यह रहा कि आज दुनिया भर की वैज्ञानिक प्रगति में भारत अपना सहयोग प्रदान कर रहा है।
आइआइटी, आइआइएम, एनआइडी अंतरिक्ष रिसर्च की स्थापना की
असिस्टेंट प्रोफेसर ने कहा कि 1947 में जिस विज्ञान के विकास का बजट मात्र 24 मिलियन था, 1964 में वह 550 मिलियन तक पहुंच चुका था। इस बजट की वृद्धि ने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। नेहरू का मानना था कि ‘लोगों को अपने विचारों के सहारे आगे बढ़ना चाहिए न कि दूसरों के।’ इसी का परिणाम था कि उन्होंने आइआइटी, आइआइएम, एनआइडी तथा भारतीय राष्ट्रीय कमेटी अंतरिक्ष रिसर्च की स्थापना की। इसके साथ ही 1963 में अप्सरा का सफल परीक्षण भी किया
नेहरू जी का मानना था कि बुद्धि के सहारे विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए
डॉ. संतोष सिंह इन सभी बातों के साथ ही नेहरू के लिए जो महत्पूर्ण सवाल था वह था कि “मनुष्य की मंजिल क्या है’ इसके उत्तर की तलाश में उन्होंने धर्म, दर्शन और विज्ञान तीनों ही रास्तों से अपनी खोज जारी रखी किंतु उन्हें कहीं भी संतोष जनक उत्तर नही मिला,कहीं बुद्धि और तर्क का नकार था तो कही संदेह और हिचकिचाहट। इन सब के बाद नेहरू ने स्वीकार किया कि सबसे पहले मनुष्य को अपने को जानना चाहिए और फिर बुद्धि के सहारे विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए। क्योंकि दुनिया को बुद्धि ने उसकी खोज यात्रा में काफी सहयोग प्रदान किया मनुष्य ने जैसे जैसे प्रगति के अर्थ को समझा वैसे बुद्धि का प्रयोग कर आगे बढ़ता चला।
मनुष्य अपनी ज्यादातर खोजों में नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रभावित है
डॉ. संतोष सिंह ने कहा कि आज की स्थिति यह है कि मनुष्य अपनी ज्यादातर खोजों में नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रभावित है और उस ओर अग्रसर है जहाँ संपूर्ण सभ्यता ही समाप्त हो जायेगी वही सभ्यता जिसको विकास की तरफ अग्रसर करने में न जाने कितना वक्त लगा। दुनिया की नकारात्मक सोच का ही एक ज्वलंत उदाहरण है” कोविद -19″जिससे न जाने कितने परिवार अनाथ हो चुके मानवता विनाश के कगार पर खड़ी है