दुनियाभर में अब तक 26 लाख से ज्यादा लोग किलर कोरोना वायरस (Coronavirus ) की चपेट में आ चुके हैं और 1.84 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। चीन (China) के वुहान (Wuhan) शहर से शुरू हुई यह महामारी अब दुनिया के 195 देशों में फैल चुकी है। इस महमारी से निपटने के लिए अब ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन (Oxford University Coronavirus vaccine) का सबसे बड़ा ट्रायल आज से शुरू हो गया है। आइए जानते हैं इस वैक्सीन (Coronavirus vaccine) के बारे में सबकुछ…
कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही दुनिया को इस महामारी से निजात दिलाने के लिए आज से ब्रिटेन में दुनिया का सबसे बड़ा ड्रग ट्रायल शुरू हो गया है। ब्रिटेन में बेहद अप्रत्याशित तेजी के साथ शुरू होने जा रहे इस परीक्षण पर पूरे विश्व की नजरें टिकी हुई हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन ‘ChAdOx1 nCoV-19’ से आने वाले कुछ सप्ताह में चमत्कार हो सकता है। आइए जानते हैं कि क्या है यह वैक्सीन….
दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना ड्रग ट्रायल
ब्रिटेन में 165 अस्पतालों में करीब 5 हजार मरीजों का एक महीने तक और इसी तरह से यूरोप और अमेरिका में सैकड़ों लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण होगा। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विभाग के प्रफेसर पीटर हॉर्बी कहते हैं, ‘यह दुनिया का सबसे बड़ा ट्रायल है।’ प्रफेसर हॉर्बी पहले इबोला की दवा के ट्रायल का नेतृत्व कर चुके हैं। उधर, ब्रिटेन के हेल्थ मिनिस्टर मैट हैनकॉक ने कहा है कि दो वैक्सीन इस वक्त सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि एक ऑक्सफर्ड और दूसरी इंपीरियल कॉलेज में तैयार की जा रही हैं। हैनकॉक ने बताया, ‘मैं कह सकता हूं कि गुरुवार को ऑक्सफर्ड प्रॉजेक्ट की वैक्सीन का लोगों पर ट्रायल किया जाएगा। आमतौर पर यहां तक पहुंचने में सालों लग जाते हैं और अब तक जो काम किया गया है उस पर मुझे गर्व है।’
जून में आ सकते हैं कोरोना वैक्सीन के परिणाम
प्रफेसर हॉर्बी कहते हैं कि हमें अनुमान है कि जून में किसी समय कुछ परिणाम आ सकते हैं। यदि यह स्पष्ट होता है कि वैक्सीन से लाभ है तो उसका जवाब जल्दी मिल सकता है।’ हालांकि हॉर्बी चेतावनी भी देते हैं कि कोविड-19 के मामले में कोई ‘जादू’ नहीं हो सकता है। दरअसल, इंग्लैंड में 21 नए रिसर्च प्रॉजेक्ट शुरू कर दिए गए हैं। इसके लिए इंग्लैंड की सरकार ने 1.4 करोड़ पाउंड की राशि मुहैया कराई है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में 10 लाख वैक्सीन की डोज बनाने की तैयारी चल रही है।
युवाओं पर कोरोना वैक्सीन का पहले परीक्षण
ऑक्सफर्ड की वैक्सीन का सबसे पहले युवाओं पर परीक्षण किया जा रहा है। अगर यह सफल रहा तो उसे अन्य आयु वर्ग के लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया जाएगा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University)में जेनर इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर आड्रियान हिल कहते हैं, हम किसी भी कीमत पर सितंबर तक दस लाख डोज तैयार करना चाहते हैं। एक बार वैक्सीन की क्षमता का पता चल जाए तो उसे बढ़ाने पर बाद में भी काम हो सकता है। यह स्पष्ट है कि पूरी दुनिया को करोड़ों डोज की जरूरत पड़ने वाली है। तभी इस महामारी का अंत होगा और लॉकडाउन से मुक्ति मिलेगी। कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन ही सबसे कारगर उपाय हो सकता है। सोशल डिस्टेंशिंग (Social Distancing) से सिर्फ बचा जा सकता है।
70 कंपनियां और शोध टीमें बना रही हैं कोरोना वैक्सीन
जेनर इंस्टीट्यूट के मुताबिक दो महीने में पता चल जाएगा कि वैक्सीन मर्ज कितना कम कर पाएगी। किसी वैक्सीन को तैयार करने का प्रोटोकॉल 12 से 18 महीने का होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की गाइडलाइन भी यही कहती है। उधर, ब्रिटेन के चीफ मेडिकल एडवाइजर क्रिस विह्टी कहते हैं, ‘हमारे देश में दुनिया के जाने माने वैक्सीन वैज्ञानिक हैं, लेकिन हमें पूरे डिवलपमेंट प्रोसेस को ध्यान में रखना है। इसे कम किया जा सकता है। टास्क फोर्स इस पर काम कर भी रही है। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी Covid-19 के इलाज के लिए वैक्सीन तैयार हो जाए। पूरी दुनिया में 70 से ज्यादा कंपनियां और शोध टीमें कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने पर काम कर रही हैं।
ऑक्सफर्ड की कोरोना वैक्सीन पहले ही डोज में दिखाएगी असर!
ऑक्सफर्ड की टीम के एक सदस्य ने बताया कि वैक्सीन को बनाने के लिए सबसे सटीक तकनीक का प्रयोग किया गया है। यह वैक्सीन पहले ही डोज से दमदार रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकती है। इस वैक्सीन पर शोध का नेतृत्व कर रहे प्रफेसर साराह गिलबर्ट कहते हैं कि वे लोग एक संभावित संक्रामक बीमारी पर काम कर रहे थे। इससे उन्हें कोविड-19 पर तेजी से काम करने में मदद मिली। उन्होंने कहा कि उनकी टीम पिछले लास्सा बुखार और मर्स पर काम कर रही थी जो एक अन्य कारोना वायरस वैक्सीन है। इसकी वजह से कोविड-19 की वैक्सीन बनाने में उन्हें जल्दी हुई। ताजा वैक्सीन को बनाने में ChAdOx तकनीक का प्रयोग किया गया है। इस तकनीक का अन्य बीमारियों में भी इलाज किया जा सकता है।