मनमानी पर लगे लगाम: फेसबुक और ट्विटर सरीखी कंपनियां निजता की रक्षा को लेकर सतर्क नहीं

Khabar Satta
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खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
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वाट्सएप की निजता संबंधी नीति पर उसे और उसके स्वामित्व वाली कंपनी फेसबुक को नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट ने यही संकेत दिया कि ये कंपनियां निजता की रक्षा को लेकर सतर्क नहीं। यह संकेत उसकी इस टिप्पणी से भी मिला कि आप होंगे ट्रिलियन डालर कंपनी के मालिक, लेकिन निजता उससे भी बड़ी है। वाट्सएप निजता की रक्षा के मामले में किस कदर लापरवाह है, इसका पता उसके इस जवाब से चलता है कि यदि भारत में यूरोप की तरह कानून बन जाएगा तो वह भी सतर्कता का परिचय देगा। इसका मतलब है कि कानून के अभाव में वह निजता की परवाह नहीं करेगा। ऐसे जवाब उसके मनमाने रवैये को ही प्रकट करते हैं। इस तरह की मनमानी का परिचय अन्य इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म भी दे रहे हैं। इसी कारण चंद दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा और बैर भाव बढ़ाने वाली फर्जी खबरें फैलाने एवं फर्जी अकाउंट तैयार करने की सुविधा देने की शिकायत पर ट्विटर को नोटिस जारी किया।

फेसबुक, ट्विटर आदि प्लेटफॉर्म भले ही यह दावा करते हों कि वे बिना किसी दुराग्रह लोगों को अपनी बात कहने का अवसर देते हैं, लेकिन सच यही है कि वे एक एजेंडे के तहत ऐसे तत्वों को संरक्षण-समर्थन देते हैं, जो झूठ और वैमनस्य फैलाने का काम करते हैं। इन प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग किस आसानी से किया जा सकता है, इसका ताजा उदाहरण है पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी। यह गिरफ्तारी इस आरोप में की गई है कि दिशा रवि ने भारत को बदनाम करने और देश में हिंसा भड़काने के मकसद से एक दस्तावेज तैयार करने में मदद की। यह वही दस्तावेज है, जिसे टूलकिट के रूप में ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट किया था। माना जाता है कि इस टूलकिट के पीछे कनाडा में रह रहे खालिस्तानी हैं। दिशा रवि की गिरफ्तारी पर हंगामा मचा है, लेकिन वह इस हंगामे से बेगुनाह नहीं साबित होने वाली। यह देखना अदालत का काम है कि वह बेगुनाह है या गुनहगार? अदालत चाहे जिस नतीजे पर पहुंचे, इसकी अनदेखी न की जाए कि इस टूलकिट में कृषि कानून विरोधी आंदोलन को हवा देकर चाय एवं योग के देश के रूप में भारत की छवि नष्ट करने का भी तानाबाना बुना गया था। क्या ऐसा करने से पर्यावरण और किसानों के हितों की रक्षा हो जाएगी? इस सवाल से मुंह चुरा रहे लोग इससे इन्कार नहीं कर सकते कि फेसबुक और ट्विटर सरीखी कंपनियां जानबूझकर विमर्श को दूषित करने और अफवाहें फैलाने का काम कर रही हैं। हालांकि उनके पास इस सब पर रोक लगाने की तकनीक है, लेकिन वे मनमानी का परिचय देने में लगी हुई हैं।

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