Chhapara Seoni News: छपारा नगर परिषद (Chhapara Nagar Parishad) की महिला अध्यक्ष के नेतृत्व में होने के बावजूद महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय की सुविधा अब तक उपलब्ध नहीं हो सकी। यह समस्या सिर्फ छपारा की ही नहीं, बल्कि पूरे देश में कई नगर परिषदों में महिलाओं के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर करती है। विकास का ढिंढोरा पीटने और फोटो सेशन वाले इन जनप्रतिनिधियों ने अब तक सार्वजनिक महिला शौचालय प्रसाधन की व्यवस्था नगर में क्यों नहीं कर पाए है यह बड़ा सवाल हैं।
विश्व महिला दिवस पर शर्मसार होती रही महिलाएं
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, जहां एक ओर महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बातें हो रही थीं, वहीं दूसरी ओर छपारा नगर परिषद की महिलाएं सार्वजनिक शौचालय के अभाव में अपमानित और परेशान होती रहीं।
छपारा नगर, जिसकी आबादी 20,000 से अधिक है, वहां सार्वजनिक महिला शौचालय का न होना सरकार और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है। नगर परिषद की महिला अध्यक्ष होते हुए भी इस समस्या का समाधान न निकलना गंभीर चिंता का विषय है।
महिला प्रधान नगर में महिलाएं क्यों हो रही हैं परेशान?
छपारा नगर परिषद की कमान पिछले तीन वर्षों से श्रीमती निशा पटेल के हाथों में है, लेकिन इसके बावजूद आज तक सार्वजनिक महिला शौचालय का निर्माण नहीं किया गया। बस स्टैंड, बाजार और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालयों की अनुपलब्धता के कारण महिलाएं अत्यधिक असुविधा झेल रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के सम्मान के लिए छपारा नगर की महिला प्रधान जनप्रतिनिधि की क्या सोच है, इसकी सच्चाई सिवनी जिले के नेशनल हाईवे पर पर स्थित छपारा नगर परिषद मुख्यालय पर देखी जा सकती है जहां आजादी के बाद से अब तक नगर के हृदय स्थल बस स्टैंड और अन्य स्थलों में सार्वजनिक महिला शौचालय एवं प्रसाधन तक नहीं है। जिसके चलते नगर के अलावा आसपास के सैकड़ों ग्रामों तथा बसों में सफर कर रही महिलाओं को छपारा बस स्टैंड में लघुशंका एवं शौच के लिए यहां-वहां भटकने के साथ-साथ शर्मसार भी होना पड़ता हैं।
विशेष रूप से हाट बाजार के दिनों में जब आसपास के गांवों से सैकड़ों महिलाएं नगर में खरीदारी करने आती हैं, उन्हें घंटों तक शौचालय के अभाव में कठिनाई झेलनी पड़ती है।
छपारा में सार्वजनिक महिला शौचालय की जरूरत क्यों है?
- बस स्टैंड पर कोई शौचालय नहीं – यहां से प्रतिदिन सैकड़ों महिलाएं सफर करती हैं।
- हाट बाजार में बड़ी संख्या में महिलाएं आती हैं, लेकिन उनके लिए कोई सुविधा नहीं।
- यात्रा के दौरान महिलाएं इधर-उधर भटकने को मजबूर हो जाती हैं, जिससे वे असहज और शर्मसार महसूस करती हैं।
- स्वच्छता और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं, जिससे महिलाओं में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता का नतीजा भुगत रही हैं महिलाएं
छपारा नगर परिषद के अधिकारी शहरी विकास और स्वच्छता मिशन की बड़ी-बड़ी योजनाओं की बातें करते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा तक उपलब्ध नहीं करा पाए।
सवाल यह उठता है कि नगर परिषद और प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर चुप क्यों हैं?
- क्या विकास सिर्फ कागजों पर सीमित है?
- क्या महिला सशक्तिकरण सिर्फ नारों तक सीमित है?
- क्या महिलाओं की असुविधा और परेशानियों से सरकार को कोई मतलब नहीं?
सरकारी योजनाओं का लाभ क्यों नहीं पहुंच रहा?
केंद्र और राज्य सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन, अमृत योजना और नगरीय स्वच्छता अभियान जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके अंतर्गत सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण प्राथमिकता में रखा गया है।
लेकिन, छपारा नगर परिषद में इन योजनाओं के तहत महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय अब तक क्यों नहीं बनाया गया?
- फंड की कमी एक बहाना बन चुकी है, जबकि अन्य कार्यों के लिए धनराशि आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण आज भी महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर अपमानित महसूस कर रही हैं।
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से सवाल
- महिला अध्यक्ष होने के बावजूद अब तक सार्वजनिक शौचालय क्यों नहीं बनवाया गया?
- महिला दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर क्या महिलाओं की वास्तविक समस्याओं का हल निकालना जरूरी नहीं?
- क्या सिर्फ घोषणाओं और फोटो सेशन तक सीमित रहेगा महिला सशक्तिकरण?
समाधान क्या हो सकता है?
- तत्काल सार्वजनिक महिला शौचालयों का निर्माण – विशेष रूप से बस स्टैंड, हाट बाजार और भीड़भाड़ वाले इलाकों में।
- स्थानीय प्रशासन को जवाबदेह बनाना – नगर परिषद को इसके लिए समयबद्ध योजना बनानी चाहिए।
- महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना – महिलाओं को अपनी जरूरतों के लिए प्रशासन पर दबाव बनाना होगा।
- सरकारी योजनाओं का उचित क्रियान्वयन – सरकार की योजनाओं को सही तरीके से लागू करने की जरूरत है।
छपारा नगर परिषद में महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय की अनुपलब्धता एक गंभीर समस्या है। जब तक प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देंगे, महिलाओं की परेशानियां बनी रहेंगी।
इस महिला दिवस पर हमें सिर्फ नारों और कार्यक्रमों तक सीमित न रहकर, महिलाओं की वास्तविक समस्याओं का हल निकालने की जरूरत है। जब तक सार्वजनिक स्थानों पर महिला शौचालयों की सुविधा उपलब्ध नहीं होगी, तब तक महिला सशक्तिकरण अधूरा रहेगा।