मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जारी प्रशासनिक संकट ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरी हैं, जहाँ राजस्व निरीक्षक रतन शाह उईके का 17 जून 2025 को सिवनी से कुरई तबादला कर दिया गया, लेकिन हफ्तों बीतने के बावजूद वे अभी भी उसी पद पर जमे हुए हैं। यह मामला न केवल प्रशासनिक नियमों की अनदेखी को उजागर करता है, बल्कि राजनीतिक दखल और अफसरशाही की मिलीभगत को भी सामने लाता है।
15 वर्षों से एक ही जगह जमे रतन शाह उईके: तबादला नीति की उड़ रही धज्जियां
तबादला नीति का मुख्य उद्देश्य होता है कि सरकारी अधिकारियों को एक ही स्थान पर लंबे समय तक तैनात न किया जाए, जिससे भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत स्वार्थ की गुंजाइश न बचे। लेकिन रतन शाह उईके पिछले 15 वर्षों से सिवनी में पदस्थ हैं। यह स्थिति केवल नीति के उल्लंघन का मामला नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि कैसे कुछ अधिकारी प्रशासनिक आदेशों को दरकिनार करते हुए स्वयं को “अपरिवर्तनीय” बना लेते हैं।
तबादला आदेश के बाद भी रिलीविंग नहीं: विभाग की चुप्पी रहस्यमयी
जिला प्रशासन द्वारा स्थानांतरण सूची में रतन शाह उईके का नाम स्पष्ट रूप से शामिल किया गया, फिर भी संबंधित विभाग द्वारा अब तक रिलीविंग आदेश जारी नहीं किया गया। ना कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है, और ना ही यह स्पष्ट किया गया है कि आदेश के बावजूद स्थानांतरण अमल में क्यों नहीं लाया गया।
यह चुप्पी प्रशासन की निष्क्रियता या अंदरूनी मिलीभगत का संकेत देती है।
तीन साल पहले भी हुआ था आदेश, तब भी रहे थे यथावत
यह कोई पहला मामला नहीं है। साल 2022 में भी रतन शाह उईके का स्थानांतरण आदेश जारी हुआ था, लेकिन तब भी वह केवल काग़ज़ों तक सीमित रह गया। प्रशासनिक सूत्रों और जनचर्चाओं के अनुसार, राजनीतिक संरक्षण और आंतरिक सेटिंग के चलते वे अपने पद पर बने रहे।
जनता के तीखे सवाल: क्या कुछ अफसर ‘सबसे ऊपर’ हैं?
इस पूरे प्रकरण ने जनता के मन में कई चुभते हुए प्रश्न खड़े कर दिए हैं:
- क्या रतन शाह उईके को राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है?
- यदि तबादला अमल में नहीं लाना था, तो आदेश क्यों जारी किया गया?
- क्या जिला कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक नहीं है?
जनता का विश्वास तभी बहाल हो सकता है जब इस मामले में खुली जांच और दोषियों पर कार्रवाई हो।
प्रशासनिक निष्क्रियता के दुष्परिणाम
यदि इस प्रकार की स्थिति सामान्य बनती गई, तो इसके दुष्परिणाम होंगे:
- अन्य अधिकारी भी तबादला नीति की अनदेखी को आदत बना लेंगे।
- ईमानदार अधिकारियों का मनोबल टूटेगा।
- प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और पक्षपात को बल मिलेगा।
- जनता का प्रशासन पर से भरोसा उठ जाएगा।
कलेक्टर की भूमिका पर उठे सवाल
एक सक्रिय और सक्षम कलेक्टर की ज़िम्मेदारी होती है कि तबादलों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो यह या तो प्रशासनिक कमजोरी है या फिर बाहरी दबावों का परिणाम। दोनों ही स्थितियाँ प्रशासन की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को चुनौती देती हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका
स्थानीय चर्चाओं और सूत्रों से यह बात सामने आ रही है कि रतन शाह उईके को प्रभावशाली राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। यदि यह सत्य है, तो यह एक बेहद खतरनाक उदाहरण है, जहाँ प्रशासनिक निर्णयों पर राजनीतिक दबाव हावी हो जाता है, और लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होती है।
मीडिया और जनमत का दबाव: लेकिन क्या पर्याप्त है?
इस प्रकरण को मीडिया द्वारा उजागर किया गया, जिससे मामला जनता के सामने आया। हालांकि, केवल मीडिया दबाव पर्याप्त नहीं है। जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता, तब तक ऐसे मामलों का समाधान संभव नहीं।
राज्य स्तरीय जांच की आवश्यकता
इस मामले की राज्य स्तर पर उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए:
- संबंधित अधिकारियों से जवाब लिया जाए कि आदेश क्यों लागू नहीं हुआ।
- राजनीतिक हस्तक्षेप की भूमिका की जांच की जाए।
- दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
केवल कठोर और दृढ़ कदम ही प्रशासनिक ईमानदारी को बहाल कर सकते हैं।
नियमों से ऊपर कोई नहीं
रतन शाह उईके का मामला सिर्फ एक तबादले का नहीं है, यह प्रशासनिक लापरवाही, राजनीतिक हस्तक्षेप और नीति की अवहेलना का ज्वलंत उदाहरण है। जब तबादले जैसे सामान्य प्रशासनिक निर्णय भी लागू नहीं हो पाते, तो यह पूरी शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।