सिवनी, बरघाट: गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न योजना के अंतर्गत वितरण किए जा रहे गेहूं में नमी व गीलापन की लगातार शिकायतों ने इस बार एक बड़ा खुलासा कर दिया है। बरघाट तहसील के आखीवाड़ा गांव की राशन दुकान में जब गेहूं की बोरियों को खोला गया, तो उसमें अत्यधिक नमी और गीलापन पाया गया। जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि गोदाम स्तर से ही गेहूं को पानी से भिगोया जा रहा था, जिससे उसका वजन 52 किलो से बढ़कर 54 किलो तक पहुंच गया था।
आखीवाड़ा राशन दुकान में जब परिवहन कर्ता के हम्मालों द्वारा गेहूं की बोरियां खाली की गईं, तब कुछ बोरियों का वजन सामान्य से अधिक पाया गया। 53 से 54 किलो तक के वजन वाली इन बोरियों को जब खोला गया तो पाया गया कि गेहूं में न केवल नमी थी, बल्कि उसे पानी से सींचा गया था। इस कृत्य के पीछे उद्देश्य साफ है — बोरियों का वजन बढ़ाकर अधिक मात्रा में राशन प्रदाय दिखाना और इस प्रक्रिया में अनाज की कालाबाजारी को अंजाम देना।
तहसीलदार के आदेश पर पटवारी ने किया पंचनामा
तहसीलदार अमरित लाल धुर्वे ने मामले की गंभीरता को देखते हुए हल्का पटवारी अंकित मरशकोले को मौके पर भेजा। पटवारी ने महिला स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित राशन दुकान में पहुँचकर, सरपंच, ग्रामीणों और राशन कार्ड धारकों की उपस्थिति में गेहूं का परीक्षण कर विधिवत पंचनामा तैयार किया। इस जांच से साफ हो गया कि गेहूं की नमी प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि उसे कृत्रिम रूप से भिगोया गया था।
पूर्व से मिल रही थी गेहूं और चावल में नमी की शिकायतें
यह पहला मामला नहीं है। अतीत में भी राशन में वितरण किए जा रहे गेहूं और चावल में नमी की शिकायतें मिलती रही हैं। लेकिन हर बार गोदाम प्रभारी द्वारा दवा छिड़कने की बात कहकर मामले को टाल दिया जाता था। इस बार जांच में पीपी बोरियों में भरे गेहूं का वजन 52 से 54 किलो तक पाया गया, जो सामान्य वजन से अधिक है, और साथ ही उसमें स्पष्ट गीलापन मौजूद था।
प्रधानमंत्री की मुफ्त राशन योजना पर लग रहा कलंक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित मुफ्त खाद्यान्न वितरण योजना देश के करोड़ों गरीब परिवारों के लिए वरदान है। परंतु कुछ लालची गोदाम कर्मचारी और वितरण एजेंसियां इस योजना को बदनाम करने पर तुली हुई हैं। अनाज की कालाबाजारी के इस नए तरीके से न केवल गरीबों को खराब गुणवत्ता वाला राशन मिल रहा है, बल्कि यह योजना की साख को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
राशन विक्रेताओं पर गिर रहा जनता का आक्रोश
जब गीला और खराब गेहूं राशन दुकान तक पहुंचता है, तो राशन वितरक को गरीबों के आक्रोश का सामना करना पड़ता है। असल दोषियों की पहचान न होने की स्थिति में राशन विक्रेताओं की छवि भी धूमिल होती है, जबकि वे स्वयं इस अनियमितता का शिकार होते हैं। विभागीय उदासीनता इस स्थिति को और गंभीर बना रही है।
जरूरी है दोषियों पर कड़ी कार्रवाई
ग्रामीणों द्वारा ठोस कार्रवाई की मांग की जा रही है ताकि भविष्य में इस तरह की अनियमितताओं पर लगाम लग सके। विभाग को चाहिए कि वे ऐसे गोदाम प्रभारियों और संबंधित कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई करें, जो बोरी का वजन बढ़ाकर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
तीन माह का राशन वितरण और बढ़ी जिम्मेदारी
सरकार के निर्देशानुसार जून, जुलाई और अगस्त तीनों माह का राशन वितरण एक साथ किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में, बड़ी मात्रा में चावल और गेहूं का परिवहन व वितरण किया जा रहा है। इतनी बड़ी मात्रा में खाद्यान्न का सही तरीके से निरीक्षण करना जरूरी है, लेकिन ऐसी घटनाएं साबित करती हैं कि सतर्कता और निगरानी में भारी लापरवाही बरती जा रही है।
बोरियों में नहीं था कोई मार्का और टैग
जांच में एक और गंभीर लापरवाही सामने आई — राशन दुकान में प्राप्त गेहूं की बोरियों पर न तो कोई मार्का था, न टैग। नियमानुसार, किसी भी खाद्यान्न भंडारण बोरियों में राइस मिल या खरीदी केंद्र का नाम, स्थान, समिति का नाम और वर्ष अंकित होना चाहिए, लेकिन यहां सभी बोरियां बिना टैग और मार्का के मिलीं, जिससे यह स्पष्ट है कि इन बोरियों की सप्लाई में पारदर्शिता नहीं थी।
क्या कहता है प्रशासन?
तहसीलदार अमरित लाल धुर्वे ने स्पष्ट किया है कि खाद्यान्न में इस प्रकार की अनियमितता को सहन नहीं किया जाएगा, और जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने भरोसा दिलाया है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
यह मामला सिर्फ आखीवाड़ा की राशन दुकान का नहीं है, बल्कि राज्य भर में चल रही एक बड़ी कालाबाजारी प्रणाली का हिस्सा प्रतीत होता है। अब जबकि जांच में स्पष्ट हो गया है कि बोरियों का वजन जानबूझकर बढ़ाया गया था, आवश्यक है कि राज्य स्तर पर व्यापक निरीक्षण अभियान चलाया जाए, और जो भी अधिकारी या कर्मचारी इस घोटाले में संलिप्त हैं, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।
गरीबों के हक का अनाज अगर गोदामों में ही मिलावट और पानी सींचने जैसी धोखाधड़ी का शिकार होता है, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है।