सिवनी, धारनाकला (एस. शुक्ला): सहकारी समितियों में व्याप्त अनियमितताओं की शिकायतों के बावजूद और जांच के आदेशों के बाद भी उपायुक्त कार्यालय ने सहकारिता सिवनी से निष्पक्ष जांच नहीं की है, तो इसका मतलब यह है कि संबंधित अधिकारियों की भ्रष्टाचार की संदेह बढ़ती जा रही है। जांच के आदेश के बावजूद एक वर्ष से जांच ‘ठंडे बस्ते’ में पड़ी हुई है।
मामला: सिवनी जिले की सहकारी समिति आष्टा का
ध्यान देने योग्य है कि आष्टा ग्राम और छेत्र के जनप्रति निधियों और किसानों द्वारा नवंबर 2022 को समिति की अनियमितताओं और शासकीय राशि में हेरफेरी के आरोप के साथ शिकायत की गई थी।
इस पर उपायुक्त अखिलेश निगम ने धारा 60 के तहत जांच की आदेश दिए थे। जांच की प्रारंभिक चरण तो शुरू हो गई है, लेकिन उपायुक्त के स्थानांतरण के बाद जिन अधिकारियों को समिति की जांच मिली, वे इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।
इससे संबंधित विभाग पर सवाल उठते हैं। जनप्रति निधियों और किसानों द्वारा जांच की मांग की गई है, और उन्होंने विभागीय अधिकारियों को जानकार किया है कि उन्हें जांच करने का आदेश दिया जाना चाहिए।
चक्काजाम: हो चुका है चक्काजाम
बड़े स्तर पर, आष्टा के सहकारी समितियों में व्याप्त अनियमितताओं को लेकर ग्रामीणों और क्षेत्रीय किसानों ने चक्काजाम किया है। इस पर उपायुक्त अखिलेश निगम ने त्वरित कार्रवाई की और समितियों के प्रबंधकों के साथ संवाद करने का प्रयास किया और निलंबन भी किया। धारा 60 के तहत भी जांच का आदेश दिया गया था। हालांकि, बहुत लंबे समय से जांच नहीं हो रही है, जिससे ग्रामीणों के मन में आपत्ति है। जिनके हाथों में समिति का प्रबंधन है, वे लाभान्वित हो रहे हैं।
अनेकों समितियों की वजह से बना अनियमितताओं का बड़ा क्षेत्र
ध्यान देने योग्य है कि बरघाट विकास खंड के कई सहकारी समितियाँ भी अनियमितताओं के चक्र में हैं। यहाँ पर लाखों की वसूली के साथ-साथ कार्रवाई की आवश्यकता है, लेकिन अब तक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। उपायुक्त सहकारिता सिवनी से तमाम पत्र और नोटिस आए हैं, लेकिन अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है।
धारनाकला ब्रांच के अंतर्गत समितियों से करोड़ों की वसूली केवल नोटिस तक ही सीमित रह गई है। इससे स्पष्ट होता है कि जो सहकारी समितियाँ किसानों से जुड़ी हैं, वे हानि और नुकसान की ओर बढ़ती जा रही हैं, जबकि समितियों के प्रबंधक आराम से बढ़ रहे हैं।
कमीशन के बावजूद शार्टेज
यह दिलचस्प है कि खाद बीज भंडार और धान उपार्जन के तहत सहकारी समितियाँ लाखों का कमीशन प्राप्त करती हैं, लेकिन धान उपार्जन नीति को ठेंगा दिखाते हुए भी हजारों क्विंटल के धान में शार्टेज की समस्या दिनबदिन बढ़ रही है।
इसके बावजूद, शार्टेज की वसूली में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं, और लाखों रुपये की छठी समिति के खाते में जमा हो रही हैं। धान उपार्जन नीति के अनुसार, शार्टेज की वसूली जवाबदार से होनी चाहिए, लेकिन यह कार्रवाई भी सीमित रह गई है और समिति के पास लाखों का आपूर्ति बढ़ गया है।
फर्जी नियुक्तियाँ और चर्चाएँ
यह भी दिखता है कि सहकारी समितियों में फर्जी नियुक्तियाँ की समस्या है, और चर्चाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। एक ओर, जहाँ सहकारी समितियों में अनुकम्पा नियुक्तियों के लिए परिवार दर-दर की ठोकर खा रहे हैं, वही दूसरी ओर अन्यथा नियुक्तियाँ भी हो रही हैं जिसमें दैनिक वेतन भोगने वाले कर्मचारियों के नाम पर नियमों के खिलाफ नियुक्तियाँ की जा रही हैं और उनके खिलाफ लाखों की वसूली की जा रही है।
जिले के संवेदनशील जिला कलेक्टर से आशा है कि वे इस मामले में कड़ी कार्रवाई करेंगे।