Seoni News: सिवनी जिले के बरघाट विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम धारनाकला में शासकीय जमीन का सुनियोजित दोहन किया जा रहा है। यहां एक प्रभावशाली भूमाफिया गिरोह द्वारा शासकीय जमीन से सटी खेतिहर निजी जमीन की खरीद-फरोख्त कर, राजस्व विभाग को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यह न केवल प्रशासनिक चूक का जीता-जागता उदाहरण है, बल्कि क्षेत्रीय किसानों के लिए भी भविष्य की बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।
भूमाफिया का “लंबा खेल” और राजस्व की चपत
ग्राम धारनाकला में भूमाफिया ने चार करोड़ रुपये प्रति एकड़ की दर से जमीन खरीदने का सौदा किया है। ये सौदे ऐसी निजी जमीनों के हैं जो शासकीय भूमि से सटी हुई हैं। भूमाफिया इन जमीनों को खरीदकर ऐसा भ्रम फैला रहे हैं मानो ये पूरी तरह वैध हों, जबकि सच्चाई यह है कि इन जमीनों की सीमा और स्वामित्व को लेकर अभी तक स्पष्ट सीमांकन नहीं हुआ है।
यही नहीं, इस प्रक्रिया में स्टांप ड्यूटी की चोरी भी बड़े स्तर पर की जा रही है, जिससे सरकार को लाखों रुपये के राजस्व की हानि हो रही है। राजस्व विभाग की लापरवाही और स्थानीय प्रशासन की अनदेखी ने भूमाफिया को इस काले खेल में खुली छूट दे दी है।
किसानों के लिए बढ़ती जमीन की कीमतें बनी सिरदर्द
धारनाकला क्षेत्र में भूमाफिया द्वारा शासकीय जमीन से सटी भूमि को ऊंचे दामों पर खरीदने से पूरे क्षेत्र की भूमि दरों में असामान्य वृद्धि देखी जा रही है। अब जब किसी किसान को आवश्यकतानुसार भूमि खरीदनी होती है, तो जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, जिससे गरीब और मध्यमवर्गीय किसान भूमिहीनता की कगार पर पहुंच गए हैं।
ग्राम पंचायत घीसी में भी भूमाफिया का गहरा जाल
धारनाकला की ही तरह ग्राम पंचायत घीसी में भी शासकीय जमीन को लेकर भूमाफिया ने सक्रियता बढ़ा दी है। यहां शासकीय भूमि से सटी खेतिहर जमीन को करोड़ों में बेचा जा रहा है, और फिर उस जमीन के आसपास की सरकारी भूमि को निजी दिखाकर बिक्री का प्रयास हो रहा है।
हालांकि ग्राम पंचायत घीसी की सरपंच की सजगता से इस खेल पर कुछ हद तक नकेल कसी गई है, और बरघाट तहसीलदार के आदेश पर सीमांकन की प्रक्रिया शुरू की गई है। लेकिन यह भी सामने आ रहा है कि भूमाफिया सीमांकन को रोकने के लिए दबाव tactics अपना रहे हैं ताकि शासकीय जमीन को निजी रूप में उपयोग किया जा सके।
शासकीय जमीन पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स निर्माण की योजना
ग्राम पंचायत घीसी की सरपंच ने शासकीय भूमि के सीमांकन के बाद, वहां शॉपिंग कॉम्प्लेक्स निर्माण का प्रस्ताव रखा है। यह निर्णय न केवल गांव के विकास में सहायक होगा बल्कि भूमाफिया की साजिशों पर भी पानी फेरने वाला कदम साबित हो सकता है।
चूंकि यह जमीन भी सिवनी-बालाघाट मुख्य मार्ग से सटी हुई है, इसका व्यावसायिक उपयोग किए जाने की योजना पूरी तरह से जनहित में है, लेकिन भूमाफिया लगातार इसमें विघ्न डालने के प्रयास कर रहे हैं।
प्रशासनिक ढील बनी अवैध कब्जों की जननी
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि प्रशासन समय रहते सख्त कार्रवाई करता, तो आज शासकीय जमीन की यह दुर्दशा न होती। सीमांकन, रजिस्ट्री पर निगरानी, भूमिगत सौदों की जांच जैसे उपायों के अभाव में ही भूमाफिया अपने मकसद में सफल हो रहे हैं।
पंचायत प्रतिनिधियों, राजस्व अधिकारियों, स्थानीय पुलिस व जनप्रतिनिधियों को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। शासन की संपत्ति का निजी उपयोग न केवल अपराध है बल्कि यह सामाजिक व आर्थिक असमानता को भी जन्म देता है।
क्या कहता है कानून?
भारत में शासकीय जमीन का निजी उपयोग पूरी तरह से अवैध है। भूमि सुधार अधिनियम, राजस्व संहिता और भू-अर्जन अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। फिर भी स्थानीय प्रशासन की ढिलाई, इन कानूनों को कागज़ों तक सीमित कर रही है।
आम जनता और मीडिया की भूमिका
इस पूरे मामले में स्थानीय जनता और मीडिया की सक्रिय भूमिका ही इस भूमाफिया जाल को उजागर कर सकती है। RTI (सूचना का अधिकार) का प्रयोग कर भूमि की वास्तविक स्थिति जानना, प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत दर्ज कराना और स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाना—ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे हम शासकीय जमीन को भूमाफियाओं से बचा सकते हैं।
धारनाकला और घीसी पंचायत के उदाहरण यह दिखाते हैं कि यदि प्रशासनिक निगरानी ढीली पड़े, तो शासकीय जमीन का व्यवस्थित दोहन कैसे किया जाता है। अब समय आ गया है कि शासन-प्रशासन मिलकर, स्थानीय स्तर पर निगरानी तंत्र को मजबूत करें और शासकीय संपत्ति की रक्षा के लिए सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करें।
शासकीय जमीनें जनता की धरोहर हैं, और इनका उपयोग सार्वजनिक कल्याण हेतु होना चाहिए, न कि भूमाफियाओं की काली कमाई के लिए।