सिवनी, मध्यप्रदेश: सिवनी जिले के डांगावानी गांव में शनिवार को हुई भारी बारिश ने एक बार फिर प्रशासन की लापरवाही और बेजवाब जिम्मेदारी को बेनकाब कर दिया। झिरी और डांगावानी को जोड़ने वाले पुल पर बिजना नदी का पानी पुल के ऊपर से बहने लगा, लेकिन इसके बावजूद सैकड़ों लोग अपनी जान हथेली पर रखकर पुल पार करते रहे।
इनमें महिलाएं, बुजुर्ग और मासूम बच्चे भी शामिल थे, जो पैदल और मोटरसाइकिल से इस खतरनाक बहाव को पार कर रहे थे। एक फिसलन, एक चूक — और जिंदगी नदी की उफनती लहरों में समा सकती थी, लेकिन मजबूरी के आगे डर भी हार गया।
न बैरिकेड, न चौकीदार — सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस खतरनाक स्थिति के दौरान प्रशासन की तरफ से न तो कोई बैरिकेडिंग लगाई गई थी और न ही कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद था। स्थानीय लोगों का कहना है कि थोड़ी सी भी बारिश में नदी उफान पर आ जाती है और हर साल यही खतरनाक नजारा देखने को मिलता है, लेकिन प्रशासन अब तक सिर्फ कागज़ी कार्रवाई तक सीमित रहा है।
गांव के निवासी प्रहलाद सिंह राजपूत ने बताया —
“हमने कई बार जनप्रतिनिधियों को इस समस्या के बारे में अवगत कराया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हर बरसात में हमारी जान खतरे में रहती है।”
अधिकारियों का उदासीन रवैया: लखनादौन के एसडीएम रवि कुमार से जब इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं है। उनका बयान था — “प्रशासन की टीम मौके पर भेजकर आवाजाही बंद कराएंगे।”
लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि — “लोगों से इस बारे में कोई शिकायत नहीं मिली है, अगर शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई करेंगे।”
यह बयान प्रशासनिक लापरवाही की एक बानगी है, जो तब तक कदम नहीं उठाता, जब तक कोई औपचारिक शिकायत न करे — चाहे हालात कितने भी खतरनाक क्यों न हों।
विधायक का वादा, लेकिन कब तक?
सिवनी विधायक दिनेश राय ने इस समस्या को स्वीकारते हुए कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के सामने यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही आदेगांव से बखारी तक सड़क का निर्माण होगा, जिससे यह समस्या खत्म हो जाएगी।
लेकिन सवाल यह है कि “जल्द” आखिर कब आएगा?
क्योंकि हर गुजरते बरसात के साथ गांव वालों की मुश्किलें बढ़ रही हैं और उनकी जिंदगी रिस्क के पुल पर टंगी है।
निष्क्रियता की कीमत जनता की जान
डांगावानी की यह घटना सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस प्रशासनिक ढर्रे की तस्वीर है, जिसमें फाइलें चलती हैं, लेकिन काम नहीं। जहां हर बरसात में गांव वाले अपनी जान दांव पर लगाकर पुल पार करते हैं, और अधिकारियों के बयान से ज्यादा सुरक्षा की उम्मीद नहीं होती।
यह वाकया साबित करता है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह लापरवाही किसी दिन बड़ी त्रासदी में बदल सकती है।