सिवनी । भगवान महावीर का जीवन सर्वजनहिताय,सर्वजनसुखाय था। उनका जीवन दर्शन, उनकी परंपरा एवं सिद्धांत व्यक्तित्व उत्थान तथा समाज की प्रगति और संगठन के लिये थे। व्यक्ति बूंद है,तो समाज समुद्र है। बूंद स्वयं को विलीन कर सागर बन जाती है।
सागर उस बूंद को विराट और महान रत्नाकर में समन्ववित कर उद्वान्तस्वरूप प्रदान कर देता है। उक्ताशय की बात दिगम्बर जैन समाज के वरिष्ठ एडव्होकेट अभिनंदन दिवाकर ने महावीर जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किये।
इस अवसर पर पारस जैन ने कहा कि भगवान महावीर ने व्यक्ति के हितार्थ लोक व्यवस्था तथा लोक व्यवहार के सैद्धान्तिक सूत्र दिये है। आज भी उनकी प्रासंगिकता देखी जाती है। जीओ और जीने दो इसके व्यक्ति और समाज समाया हुआ है।
विपनेश जैन ने कहा कि मानव जीवन की उन्नति एवं सुख समृद्धि के लिए समाज का विशिष्ट महत्व है। व्यक्ति समाज की कड़ी है। अनेक व्यक्तियों के बिना समाज भी नही बन सकता। मानव जीवन की अनेक समस्या है। जो समाज और परिवार के द्वारा सुलझाई जाती है।
मनीष जैन ने कहा कि परिवार समाज का ही एक घटक है, जीवन में जब सामाजिकता का विकास होता है,तो निजी स्वार्थ व व्यक्तिगत हितों को बलिदान करना पड़ता है। अपने हित व स्वार्थ सुख से ऊपर होता है। पवन दिवाकर ने कहा कि भगवान महावीर ने अंहिसा,अमिथ्या, अचौर्य, ब्रहचर्य और अपरिग्रह के पंचसूत्र महाव्रत तथा अणुव्रत के रूप में समझाये है।
द्यूतक्रीड़ा, मांस भक्षण, मद्यपान, चोरी इन सप्त व्यसन त्याग की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। श्वेताम्बर समाज के सुजीत नाहटा ने कहा कि भगवान महावीर ने समाज की संरचना तथा व्यक्ति के विकास के लिए सर्वप्रथम ईकाई परिवार संस्था को बताया। परिवार संगठन का आधार मात्र स्नेह, पितृ, प्रेम, दाम्पत्य, आसक्ति, भातृप्रेम, अतिथि सत्कार आदि को माना है।
वर्तमान परिवेश में जब पूरे विश्व में कोरोना वायरस महामारी ने अपना तांडव फैलाया है,ऐसे में भगवान महावीर के सिद्धांतो पर चलकर हम अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी बचा सकते है। जैसा कि कहा गया है, सादा जीवन उच्च विचार तथा जीओ और जीने दो के सिद्धांत व्यक्ति को महान बनाने में सहायक होते है।