‘एक था वामपंथ…’ चुनाव आयोग की नई घोषणा ?

By SHUBHAM SHARMA

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Ek-Tha-Vampanth

चुनाव आयोग की नई घोषणा अनुसार,  वामपंथी दलों से राष्ट्रीय दर्जा छिन गया है और वे क्षेत्रीय पार्टी बन गए। किसी समय बंगाल, त्रिपुरा व केरल में एकछत्र शासक, पंजाब जैसे कई राज्यों में प्रभावशाली दल रहे वामपंथी आज केवल केरल तक सिमट कर रह गए और राष्ट्रीय स्तर पर इनका मत प्रतिशत इतना भी नहीं बचा कि इनका राष्ट्रीय दर्जा बरकरार रख सके.’

अब इस घटना पर एक चुटकला भी चल निकला है कि, एक समाचारपत्र में चूकवश वामपंथियों के अवमूल्यन का उक्त समाचार दो पृष्ठों पर प्रकाशित हो गया। अगले दिन स पादक ने उपस पादक से इसका स्पष्टीकरण मांगा तो उसने कहा कि कामरेडों के पतन से देश की जनता इतनी खुश है कि मैं भी अपनी प्रसन्नता रोक नहीं पाया और चाव-चाव में समाचार दो स्थानों पर यह छप गया। इस पर स पादक महोदय भी मुस्कराए बिना नहीं रह पाए.

यह अब वामपंथियों के लिए ग भीर प्रश्न है कि आखिर पूरी दुनिया के मजदूरों को एक होने की बात करने वाली उनकी विचारधारा लुप्तप्राय: क्यों हो रही है? 1925 में भारत में आई इस विदेशी विचारधारा से आखिर क्या चूक हुई कि सत्ता संस्थानों से लेकर संचार माध्यमों व बौद्धिक क्षेत्र तक में फौलादी पकड़ होने और बुलेट से लेकर बैलेट तक सभी साधन अपनाने के बावजूद भी यह सौ साल से पहले ही शव शैया पर पहुंच गई?

आज क्यों माक्र्सवाद युवाओं को आकर्षित नहीं कर पा रहा? कम्यूनिस्टों का आर्थिक, सामाजिक, आस्था से जुड़ा चिन्तन क्यों अपनी धार खोता जा रहा है? बौद्धिक विमर्श में क्यों वामपन्थियों की उपस्थिति नगण्य हो गई? क्यों आज सामयिक चर्चाओं में वामपन्थियों को निमन्त्रण देना भी अनावश्यक लगने लगा है?

उक्त सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर हो सकता है और वो है वामपन्थियों का इस देश की जड़ों से कटे होना और मूलधारा के विरुद्ध पतवार चलाना.

राष्ट्र के रूप में भारत व भारतीयों को जब-जब इनकी जरूरत पड़ी, ये विरोध में खड़े नजर आए। बात देश के स्वतन्त्रता संग्राम की हो या देश पर विदेशी हमलों, आतंकवाद की या फिर राष्ट्र उत्थान की, वामपन्थियों ने वह सबकुछ किया जो किसी जि मेवार दल को नहीं करना चाहिए था।

वास्तव में जो विचारधारा किसी राष्ट्र की मूल चेतना से ही द्वेष रखती हो तो वह कुछ समय के लिए छिटपुट सफलता तो चाहे हासिल कर ले परन्तु वो दीर्घ अवधि तक अपना अस्तित्व नहीं बचा कर रख सकती। अब इस विषय पर वामपंथियों की बानगी देखिए, भारतीय क यूनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कामरेड श्रीपाद् अमृत डांगे ने ‘फ्रॉम प्रिमिटिव क यूनिज्म टू सैलेवरी’ पुस्तक लिखी जिसमें वेदों से लेकर महाभारत तक की व्या या की गई। महाभारत में भीष्म द्वारा आदर्श समाज की स्थिति का वर्णन यूं किया गया है –

न वै राज्य न च राजासीत् न दण्डो न च दण्डिका:
धर्मेणैव हि प्रजा: सर्वा: रक्षन्ति सम परस्परम्।

जिसका अर्थ है कि – ‘न राजा था, न प्रजा, न दण्ड था न ही दण्ड देने वाले, धर्म से बन्धी प्रजा एक-दूसरे की रक्षा करती थी।’ परन्तु अपनी पुस्तक में कामरेड डांगे ने इसका अर्थ निकालते हुए कहा है कि पूर्व वैदिक काल में राज्य नहीं था। उन्होंने वेदों में आए ‘गण’ शब्द का अर्थ कबीलों से निकालते हुए महाभारत के युद्ध को कबीलाशाही व उसके बाद की आने वाली राजाशाही व्यवस्था लाने वाले लोगों के बीच लड़ाई बताया है। डांगे के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण राजाशाही लाने वाले लोगों के नेता थे। गीता का सन्देश –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

अर्थात् :- तेरा कर्म में ही अधिकार है ज्ञाननिष्ठा में नहीं। वहाँ कर्म करते हुए तेरा फल में कभी अधिकार न हो अर्थात् तुझे किसी भी अवस्था में कर्म फल की इच्छा नहीं होनी चाहिये। यदि कर्मफल में तेरी तृष्णा होगी तो तू कर्मफल प्राप्ति का कारण होगा। परन्तु कामरेड डांगे ने अपनी पुस्तक में इसका अर्थ यह किया है कि- ‘तुम काम करो पर मजदूरी मत मांगो।’
इस पुस्तक का अध्ययन करने वाले एक प्रकाण्ड पण्डित बालशास्त्री हरदास ने जब कामरेड डांगे से पूछा कि ‘आपने वेेदों में वर्णित ‘गण’ शब्द का अर्थ कबीले के रूप में किया है जबकि वेदों में तो इसका अर्थ ‘गणराज्य’ से है, तो डांगे ने जवाब दिया कि ‘जो मुझे पता है मैं चिल्ला कर कहता हूं, जो तु हें पता है तुम चिल्ला कर कहो, जिसकी आवाज ऊंची होगी, लोग उसी को सत्य मान लेंगे।’

वामपंथी लोग भारत में आज तक यही कुछ तो करते आ रहे थे। पण्डित जवाहर लाल नेहरू का झुकाव रूस की तरफ था और उनकी बेटी इन्दिरा गान्धी को सत्ता संचालन के लिए कामरेडों की जरूरत थी। राजाश्रय पा कर कामरेडों ने शिक्षा, संचार व बौद्धिक संस्थानों पर कब्जा कर लिया। वे अपनी विचारधारा को सरकारी सहयोग से ऊंची-ऊंची बांचने लगे, इनका साथ दिया इनके ही समर्थक ‘इकोसिस्टम’ ने।

वे जो इतने शोर-शराबे के बावजूद भी वामपंथ का विरोध करते रहे उनकी आवाज बन्द करने का काम किया नक्सली व माओवादी कैडर ने जिसे ये आज भी ‘गांधी विद गन’ की उपाधि से विभूषित करते हैं। कौन नहीं जानता कि अंग्रेजों के समय वामपन्थी नेता भारतीय क्रान्तिकारियों को अपमानित करते रहे और रूस-चीन के दृष्टिकोण को देख कर कभी अंग्रेजों के साथ खड़े हुए तो कभी अंग्रेजों के खिलाफ।

भारत पर चीन के हमले को उचित साबित करने व हमलावर चीन के लिए धन संग्रह का काम इन्हीं वामपन्थियों ने किया। बात जिहादी आतंकवाद की हो या इस्लामिक कट्टरता की या श्रीराम मन्दिर की वामपन्थियों ने देश के बहुसं यकों से द्वेषभावना का ही परिचय दिया। आज देश में परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं, वामपंथ को पालने वाली सत्ता की भैंस मर गई तो अब पिस्सू-चीचड़ भी झडऩे लगे हैं। वामपन्थियों ने अपना व्यवहार नहीं बदला तो वह दिन दूर नहीं जब दादी-नानी अपने नाती-पोतों को कहानियों में बताया करेंगी कि ‘एक था वामपन्थ …।’

– राकेश सैन की कलम से

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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