भोपाल (मध्य प्रदेश): हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच बदलते राजनयिक समीकरणों के चलते मध्य प्रदेश पुलिस के सामने एक संवेदनशील और जटिल स्थिति उभरकर आई है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें भारतीय महिला नागरिकों के बच्चे पाकिस्तान में जन्मे हैं, और अब उनकी नागरिकता को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। यह स्थिति केवल मानवीय नहीं, बल्कि कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी गहराई से अध्ययन की मांग करती है।
भारतीय महिला, पाकिस्तानी बच्चे: नागरिकता की उलझन
भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें भारतीय महिलाओं के बच्चे पाकिस्तानी नागरिक निकले हैं। विशेष रूप से भोपाल की एक महिला का मामला चिंता का विषय बना हुआ है, जिसके दो बच्चे पाकिस्तान में जन्मे हैं। यह मामला और भी गंभीर हो जाता है जब भारतीय सुरक्षा एजेंसियां आतंकवादी घटनाओं के बाद पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाती हैं।
सरकारी दिशा-निर्देशों की प्रतीक्षा में पुलिस
पुलिस मुख्यालय, भोपाल के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इस प्रकार के मामलों में कार्रवाई को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। अधिकारी ने बताया कि वे केवल उच्च अधिकारियों से निर्देश मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस दौरान चार पाकिस्तानी पासपोर्ट धारकों को भारत छोड़ने का नोटिस दिया गया, जिनमें से तीन पहले ही देश छोड़ चुके हैं।
भारतीय नागरिकता कानून और उसके प्रावधान
भारतीय नागरिकता कानून 1955 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो भारत में जन्मा है या जिसके माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, वह भारत का नागरिक हो सकता है। हालांकि, यदि बच्चा विदेश में जन्मा है, और उसकी मां भारतीय जबकि पिता विदेशी नागरिक हो, तो यह मामला कानूनी दृष्टिकोण से जटिल हो जाता है। ऐसे मामलों में विदेश मंत्रालय एवं गृह मंत्रालय की राय अनिवार्य मानी जाती है।
पाकिस्तानी वीज़ा और भारत सरकार की नई नीति
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए वीज़ा रद्द कर दिए हैं। इन नागरिकों को एक निर्धारित समयसीमा के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है। इस फैसले का प्रभाव उन भारतीय महिलाओं और उनके पाकिस्तानी बच्चों पर भी पड़ा है, जो वर्षों से यहां रह रहे हैं।
प्रशासन की दुविधा और मानवीय पहलू
जहां एक ओर यह मामला कानूनी है, वहीं दूसरी ओर इसमें गंभीर मानवीय पहलू भी जुड़े हैं। एक महिला जो भारतीय नागरिक है, उसे अपनी बेटी से अलग होना पड़ रहा है केवल इसलिए कि बेटी का जन्म पाकिस्तान में हुआ था और उसके पास भारतीय नागरिकता नहीं है। प्रशासन को यह तय करना होगा कि नागरिकता से जुड़े नियमों में कितना लचीलापन अपनाया जा सकता है ताकि ऐसे मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
पूर्व में ऐसे मामलों का निपटारा कैसे हुआ?
यह कोई पहला मामला नहीं है। पूर्व में भी भारत में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जिनमें एक भारतीय नागरिक ने विदेशी नागरिक से विवाह किया और उनके बच्चे विदेशी नागरिक बने। कुछ मामलों में उन्हें विशेष मानवता आधारित वीज़ा देकर भारत में रहने की अनुमति दी गई, जबकि अन्य में भारत छोड़ने को कहा गया।
सरकार की भूमिका और नीति निर्धारण की आवश्यकता
इस प्रकार के मामलों में भारत सरकार को स्पष्ट नीति निर्धारण करना होगा। विशेष रूप से तब, जब महिला भारतीय नागरिक है और बच्चे की देखरेख के लिए उसका भारत में रहना जरूरी है। ऐसे मामलों में ‘मानवता’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के बीच संतुलन बनाना नितांत आवश्यक है।
वर्तमान स्थिति में उठाए गए कदम
भोपाल और इंदौर से जिन नागरिकों को भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया था, उनमें से अधिकांश ने निर्देश का पालन कर लिया है। लेकिन जिनके मामलों में नागरिकता या जन्म स्थान की जटिलताएं हैं, उन पर कोई अंतिम निर्णय अभी नहीं लिया गया है। पुलिस अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बिना स्पष्ट दिशा-निर्देशों के कार्रवाई करना संवेदनशील मुद्दा बन सकता है।
नागरिकता और सीमा सुरक्षा: एक संतुलित दृष्टिकोण जरूरी
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां हर नागरिक का अधिकार महत्वपूर्ण है, वहां इस प्रकार के मामलों में मात्र कानूनी दृष्टिकोण से निपटना संभव नहीं होता। इसके लिए सामाजिक, नैतिक और मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक हो जाता है।
इस विषय में विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को ऐसे मामलों के लिए एक विशेष समिति बनानी चाहिए जो प्रत्येक मामले की जाँच करके निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय ले सके।