पीएम ने मन की बात में कहा- किसानों को करने होंगे खेती में नए प्रयोग, उगाएं ज्यादा दाम देने वाली फसलें

Khabar Satta
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खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
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प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा और खासकर लाल किले में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान की घटना की ओर जनता का ध्यान केंद्रित करते हुए जो पीड़ा व्यक्त की, वह पूरे राष्ट्र की पीड़ा बननी चाहिए। इस दिन जो हुआ, वह घोर अनर्थ था और उसकी कोई कल्पना भी नहीं करता था। दुर्भाग्य से किसानों के नाम पर देश को शर्मसार करने वाला यह अनर्थ हुआ। इससे भी दुर्भाग्य की बात यह है कि संकीर्ण राजनीतिक कारणों से कुछ लोग इस घटना की गंभीरता को समझने से जानबूझकर इन्कार करने के साथ किसानों को उकसाने में लगे हुए हैं। किसानों की समस्याओं का समाधान उन मांगों को मानने से बिल्कुल भी नहीं होने वाला, जो दिल्ली को घेर कर बैठे कुछ किसान संगठनों की ओर से की जा रही हैं। यह अच्छा हुआ कि किसानों की समस्याओं के हल के एक तरीके का जिक्र प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में किया। उन्होंने यह जिक्र बुंदेलखंड में स्ट्राबेरी की खेती का उल्लेख करके किया। नि:संदेह इस तथ्य से अवगत होना सुखद आश्चर्य का विषय है कि बुंदेलखंड जैसे इलाके में स्ट्राबेरी की खेती हो रही है। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि नई तकनीक का सहारा लेकर स्ट्राबेरी की खेती अन्य ऐसे इलाकों में भी हो रही है, जो इसके लिए नहीं जाने जाते। ऐसे सफल प्रयोग अन्य फसलों के साथ भी हो रहे हैं। उदाहरणस्वरूप उत्तराखंड के पहाड़ों में एक पूर्व फौजी सेब उगाने में सफल रहा है।

खेती में नवाचार के सफल प्रयोगों पर गौर करते हुए किसानों को यह समझना होगा कि परंपरागत फसलें उगाने और उनके लिए एमएसपी की मांग करने से बात नहीं बनने वाली। इसका कोई औचित्य नहीं कि जिन गेहूं और चावल से सरकारी गोदाम भरे पड़े हैं, उनकी ही खेती पर जोर दिया जाए। कोई भी सरकार हो, वह एक सीमा तक ही गेहूं, चावल आदि खरीद सकती है। यह एक समस्या ही है कि अधिक पानी की मांग करने वाला धान पंजाब सरीखे कई ऐसे इलाकों में भी उगाया जा रहा, जहां उसकी ज्यादा जरूरत नहीं है। यही स्थिति गन्ने और कुछ अन्य फसलों के साथ भी है। क्या यह अजीब नहीं कि पर्याप्त से अधिक मात्रा में गेहूं और धान की खेती तो की जा रही है, लेकिन दलहन और तिलहन की खेती पर कम ध्यान दिया जा रहा है? यही कारण है कि उनका आयात करना पड़ता है। यह सही समय है कि हमारे किसान परंपरागत फसलें उगाने के बजाय नकदी और उन अन्य फसलों की खेती करें, जिनकी कहीं ज्यादा मांग है और जिनके दाम भी अधिक मिलते हैं।

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