नई दिल्ली : सवर्णों को आरक्षण देने के लिए सरकार ने लोकसभा की लड़ाई जीत ली है. लोकसभा में मंगलवार को संविधान संशोधन बिल पेश कर दिया है. इस मुद्दे पर बहस के बाद रात 9.55 बजे वोटिंग हुई. वोटिंग में 326 सांसदों ने हिस्सा लिया. इसमें संविधान संशोधन विधेयक के पक्ष में 323 वोट पड़े. 3 सांसदों ने इसका विरोध किया. बिल लोकसभा में पास हो गया. शाम 5 बजे से शुरू हुई बहस के बाद रात 9.55 बजे इस विधेयक पर वोटिंग हुई.
अब कल इसके राज्यसभा में जाने की संभावना है जहां उच्च सदन की बैठक एक दिन और बढ़ा दी गयी है. लोकसभा में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने ‘‘संविधान (124 वां संशोधन) , 2019’’ विधेयक का समर्थन किया. साथ ही सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है.
लोकसभा में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार बनने के बाद ही गरीबों की सरकार होने की बात कही थी और इसे अपने हर कदम से उन्होंने साबित भी किया. उनके जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को पारित कर दिया. चर्चा का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि बहुत सारे सदस्यों ने आशंका जताई है कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा है तो यह कैसे होगा? जो पहले के फैसले किए गए वो संवैधानिक प्रावधान के बिना हुए थे.
उन्होंने कहा कि नरसिंह राव की सरकार को संवैधानिक प्रावधान के बिना 10 फीसदी आरक्षण का आदेश जारी किया था, जो नहीं करना चाहिए था। मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत अच्छी है. इसलिए संविधान में प्रावधान करने के बाद हम आरक्षण देने का काम करेंगे. ऐसे में इस तरह की (उच्चतम न्यायालय में निरस्त होने की) शंका निराधार है.
इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद थे. सदन में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद दें. गहलोत ने कहा कि पूरे विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है. हम देर से लाए, लेकिन अच्छी नीयत से लाए. इसलिए आशंका करने की जरूरत नहीं है. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को मंजूरी दे दी.
इस बिल पर चर्चा करते हुए एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, मैं इस बिल का विरोध करता हूं. क्योंकि ये बिल एक धोखा है. इस बिल के माध्यम से बाबा साहब आंबेडकर का अपमान किया गया है. आप इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में पास नहीं करा सकते. ये वहां गिर जाएगा.
अन्नाद्रमुक के एम थंबिदुरै, आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया था. इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद न्यायिक समीक्षा में इसके टिक पाने की आशंका जतायी गयी और पूर्व में पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा इस संबंध में लाये गये कदम की मिसाल दी गयी. कई विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लायी है.
Lok Sabha passes Constitution (124 Amendment) Bill, 2019. The bill will provide reservation for economically weaker section of the society in higher educational institutions pic.twitter.com/XkAwKYx62R
— ANI (@ANI) January 8, 2019
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विधेयक में हुई चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए इस संबंध में विपक्ष के आरोपों को निर्मूल करार देते हुए कहा कि यह न्यायिक समीक्षा में इसलिए टिकेगा क्योंकि इस विधेयक के जरिये संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में संशोधन किया गया है. उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में सभी नागरिकों के विकास के लिए समान अवसर देने की बात कही गयी है और यह विधेयक उसी लक्ष्य को पूरा करता है.
जेटली ने कहा कि कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने अपने घोषणापत्र में इस संबंध में वादा किया था कि अनारक्षित वर्ग के गरीबों को आरक्षण दिया जाएगा। उन्होंने विपक्षी दलों को शिकवा-शिकायत छोड़कर ‘‘बड़े दिल के साथ’’ इस विधेयक का समर्थन करने को कहा.
कांग्रेस नेता के वी थामस ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जल्दबाजी में लाने की कवायद करार दिया और कहा कि इसमें कानूनी त्रुटियां हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी विधेयक की अवधारणा का समर्थन करती है.
केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाना चाहिए ताकि यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए. उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के तहत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही इसे मंजूरी प्रदान की है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्तमान में नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग, ऐसे व्यक्तियों से, जो आर्थिक रूप से अधिक सुविधा प्राप्त है, से प्रतिस्पर्धा करने में अपनी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्चतर, शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार पाने से अधिकांशत: वंचित रहे हैं.
अनुच्छेद 15 के खंड 4 और अनुच्छेद 16 के खंड 4 के अधीन विद्यमान आरक्षण के फायदे उन्हें साधारणतया तब तक उपलब्ध नहीं होते हैं जब तक कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं.
संविधान के अनुच्छेद 46 के अंतर्विष्ट राज्यों के नीति निर्देश तत्वों में यह आदेश है कि राज्य, जनता के दुर्बल वर्गो के विशिष्टतया अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा. संविधान का 93वां संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 खंड 5 अंत:स्थापित किया गया था जो राज्य को नागरिकों के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों के संबंध में विशेष उपबंध करने के लिये समर्थ बनाता है.
इसमें कहा गया है कि फिर भी नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग आरक्षण का फायदा लेने के पात्र नहीं थे. संविधान 124वां संशोधन विधेयक 2019 उच्चतर शैक्षणिक संस्थाओं में, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाती हों या सहायता नहीं पाने वाली हों, समाज के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्गो के लिये आरक्षण का उपबंध करने तथा राज्य के अधीन सेवाओं में आरंभिक नियुक्तियों के पदों पर उनके लिये आरक्षण का उपबंध करता है.Tags: