उच्‍च शिक्षा में बड़े बदलाव की तैयारी, खत्‍म हो सकती है यूजीसी जैसी संस्‍था

Khabar Satta
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खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
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नई दिल्ली। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अमल में उच्च शिक्षण संस्थान फिलहाल जिस तरह से अगुआ बने हुए हैं, उनमें उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए प्रस्तावित नियामक जल्द ही अस्तित्व में आ सकता है। वैसे भी नीति के अमल में जुटा शिक्षा मंत्रालय इस काम में अब देरी के मूड में नहीं है। यही वजह है कि मंत्रालय में इसे लेकर इन दिनों तेजी से काम चल रहा है। हालांकि इसे लेकर जो बड़े बदलाव होंगे, उनमें यूजीसी जैसी संस्था समाप्त हो जाएगी। वहीं मेडिकल और विधिक शिक्षा को छोड़कर सारी उच्च शिक्षा अब राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा आयोग (एचईसीआइ) के दायरे में होगी।

नई शिक्षा नीति के अमल में तेजी से जुटी सरकार अब और देरी के मूड में नहीं 

अभी उच्च शिक्षा में करीब 14 अलग-अलग नियामक काम कर रहे हैं। उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने की मुहिम में फिलहाल इस क्षेत्र में मौजूद दर्जनभर से ज्यादा नियामक एक बड़ी बाधा माने जा रहे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इससे बाहर निकलने की सिफारिश की गई है। इस दौरान पूरी उच्च शिक्षा को एक ही नियामक के दायरे में रखने के लिए भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (एचईसीआइ)के गठन का प्रस्ताव है। हालांकि नीति को मंजूरी मिलने से पहले ही सरकार ने भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग के गठन की तैयारी कर ली थी। इसे लेकर विधेयक का मसौदा भी तैयार हो गया था, लेकिन यह संसद में पेश नहीं हो पाया था। अब सरकार इस मसौदे को नए रूप में लाने की तैयारी में जुटी है।

मेडिकल और विधिक शिक्षा को छोड़कर पूरी उच्च शिक्षा होगी एक कमीशन के दायरे में

माना जा रहा है कि महीने भर के अंदर ही यह नियामक सामने आ सकता है। वैसे भी नीति में उच्च शिक्षा के लिए इस शीर्ष नियामक को वर्ष 2020 में ही गठित करने का लक्ष्य रखा गया था, जो कोरोना संकट के चलते आगे बढ़ गया है। शिक्षा मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक उच्च शिक्षा को लेकर इस नए नियामक का स्वरूप नीति के अनुरूप ही होगा। इसकी शीर्ष संस्था भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (एचईसीआइ) होगा। इसके प्रमुख के तौर पर शिक्षा मंत्री के नाम का प्रस्ताव किया गया है। इसके साथ ही इसके चार स्वतंत्र निकाय होंगे, जो विनियमन, प्रत्यायन, फंडिंग और शैक्षणिक मानकों के निर्धारण आदि का कार्य करेंगे। इनमें पहला निकाय राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद होगा। यह पूरी उच्च शिक्षा का एक साझा और सिंगल प्वाइंट रेगुलेटर होगा। हालांकि इसके दायरे में मेडिकल और विधिक शिक्षा नहीं होगी।

यह उच्च शिक्षण संस्थानों में नियमों के दोहराव और अव्यवस्था को खत्म करेगा। दूसरा तंत्र राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (नैक) होगा, जो शिक्षा की गुणवत्ता और स्वायत्तता को लेकर काम करेगा। तीसरा तंत्र उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद होगा, जो उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए फंडिंग का काम करेगा। चौथा तंत्र सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी) होगा, जो स्नातक कोर्सों के फ्रेमवर्क और कौशल विकास के लिए काम करेगा। फिलहाल नीति में 2025 तक शिक्षण संस्थानों से जुड़े 50 फीसद छात्रों को किसी न किसी एक कौशल से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।

गौरतलब है कि उच्च शिक्षा में अभी फिलहाल जो अलग-अलग नियामक काम कर रहे हैं, उनमें विश्वविद्यालयों और कालेजों के सामान्य कोर्सों के लिए यूजीसी, इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थानों और कोर्सों के लिए एआइसीटीई, शिक्षकों की शिक्षा के लिए एनसीटीई, आर्किटेक्ट से जुड़े कोर्सों के लिए आर्किटेक्चर काउंसिल, फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया, राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद, कृषि से जुड़ी पढ़ाई के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पशुओं से जुड़ी पढ़ाई के लिए वेटरनरी काउंसिल आफ इंडिया आदि शामिल हैं। ऐसे में अभी एक ही संस्थान में इन कोर्सों को शुरू करने के लिए अलग-अलग नियामकों से मंजूरी लेनी होती है।

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