अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: मुताह जैसे अमानवीय विवाह को भारत से समाप्त किया जाए तभी एक वर्ग की आधी आबादी को मिलेगी राहत

By Khabar Satta

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का करीब सौ वर्षों का एक संघर्षपूर्ण और गौरवशाली इतिहास रहा है। इस दिन दुनिया भर की महिलाएं अपने मानवाधिकार के मुद्दों को जोर-शोर से उठाती हैं और सभी अमानवीय तथा गैरबराबरी पर आधारित परंपराओं से मुक्ति के लिए आवाज बुलंद करती हैं। आज संपूर्ण विश्व में मुसलमान औरतें भी बहुत साहस के साथ अपनी बातें कह रही हैं। इसमें दोराय नहीं कि पितृसत्ता ने औरत को महज अपने आनंद की चीज बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कभी धर्म के नाम पर, कभी समाज के नाम पर कोई रास्ता निकाल ही लिया गया औरत को चंगुल में रखने का। मुताह-निकाह या मिसियार-निकाह भी एक ऐसी ही शादी का नाम है। एक निश्चित समय के लिए और एक निश्चित रकम के बदले स्त्री एवं पुरुष का संबंध ही मुताह विवाह कहलाता है।

मुताह विवाह: मुस्लिम समुदाय में धर्म के नाम पर खराब परंपरा

मुताह का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आनंद’। अत: मुताह विवाह को आनंद के लिए किए गए विवाह की संज्ञा भी दी जा सकती है। इसमें कुछ समय के लिए पुरुष किसी महिला से निकाह करता है और समय पूरा हो जाने पर निकाह अपने आप समाप्त मान लिया जाता है। इसका उल्लेख कुरान में नहीं मिलता, परंतु मुस्लिम समुदाय के भीतर धर्म के नाम पर यह खराब परंपरा प्रचलित है। गाहे-बगाहे ऐसे तमाम मामले सामने आते रहते हैं। केवल केरल के मल्लापुरम और कोझीकोड में ही बीते कुछ वर्षों में ऐसे विवाह के करीब दस मामले तो सार्वजनिक जानकारी में आए ही हैं। देश के दूसरे इलाकों में भी ऐसे वाकये देखने को मिले हैं।

मानवाधिकार के युग में आज भी यह प्रथा जीवित, अरबों के आने से यह प्रथा भारत में आई

ऐसी शादियों के रुझान को देखें तो अरब देशों के साथ उसकी कड़ियां जुड़ती दिखेंगी। अरब के इतिहास पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि मुताह का चलन पारंपरिक अरब समाज में मौजूद था। जीनत शौकत अली इस संबंध में यह लिखती हैं कि मुताह का चलन मुसलमानों, यहूदियों, ईसाइयों और पारसियों में मौजूद रहा है। भारत में अरबों के आने-जाने के साथ ही यह प्रथा भारत में चली आई। चिंता की बात यह है कि मानवाधिकार के इस युग में आज भी यह प्रथा जीवित है।

भारत और अरब के व्यापारिक रिश्ते बाद में निजी रिश्ते बनने लगे

जहां तक भारत और अरब के रिश्तों की बात है तो उसकी शुरुआत इस्लाम से नहीं, बल्कि व्यापार के माध्यम से हुई। ये रिश्ते करीब 5000 साल पुराने हैं, जिनकी जड़ें सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी हैं। व्यापारिक रिश्ते ही बाद में निजी रिश्ते बनने लगे। अरब लोग व्यापार के सिलसिले में हिंदुस्तान आते और कुछ दिन ठहरने के दौरान यहां निकाह कर लेते। केरल में यह निकाह अरबी कल्याणम कहलाया। कल्याणम शब्द मूल रूप से संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ होता है विवाह। अब यह एक खौफनाक शब्द बन गया है। यह कुप्रथा केरल के कोझीकोड, मल्लापुरम, कन्नूर, कासरगोड और यहां तक कि राजधानी तिरुअनंतपुरम जैसी जगहों से होते हुए महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र तक पहुंच गई है। यहां इसका नाम शेख-विवाह या कांट्रैक्ट मैरिज पड़ गया। सब कुछ वैसा ही रहा, बस नाम बदल गया। लड़कियां अभिशप्त ही रहीं। दक्षिण के उलट उत्तर भारत में इसका प्रभाव कम रहा, लेकिन प्रयागराज तथा लखनऊ में भी इस विवाह के प्रमाण मिले हैं। ऊंची रकम और शानोशौकत का लालच ऐसे विवाह का आकर्षण बिंदु हैं। ऐसे विवाह को गरीब समाज में जगह मिलती चली गई, जिसमें लड़की के बारे में कभी नही सोचा गया।

भारतीय संविधान महिलाओं को बराबरी, गरिमा व दैहिक स्वतंत्रता की रक्षा की गारंटी देता है

ऐसी लड़कियों की बिक्री के भारत और अरब में कोई दस्तावेज तलब नहीं होते। कोई मामला सामने आने पर ही कार्रवाई होती है। दशकों से चल रहे जागरूकता अभियान तथा जमीनी स्तर पर कामकाज के बावजूद यह समाप्त नही हो पाया है। नाबालिग विधवाएं और माताएं अपनी शेष जिंदगी कभी न खत्म होने वाले दुख के साथ जीने को मजबूर हैं। एक तरफ भारतीय संविधान महिलाओं को बराबरी, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा व दैहिक स्वतंत्रता की रक्षा की गारंटी देता है, वहीं दूसरी तरफ उनके निजी कानून इन सबको उनसे छीन लेते हैं। मुस्लिम निजी कानून शरीयत प्राधिकरण अधिनियम, 1937 जिसे भूलवश इस्लामिक कानून कहा जाता है, इसकी धारा 2 मुताह की मान्यता व अभ्यास का अनुमोदन करती है। ऐसे मामले जो शरीयत एक्ट में नही दिए गए हैं, अदालतें प्रथाओं तथा स्थानीय अधिनियमों (यदि कोई हो) को लागू करने के लिए आज भी स्वतंत्र है।

देश में बाल विवाह पर रोक, लेकिन मुताह में लड़कियों का विवाह बालिग होने से पहले ही हो जाता है

लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 7 व 8 में बच्चों के निजी अंगों के साथ छेड़छाड़ करने पर सात से दस साल की सजा का प्रविधान है, लेकिन 2012 के बाद से भी मुताह के बहुत से मामले आ चुके हैं, जिनमें सजा नही हो पाई है। देश में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 भी लागू है, लेकिन मुताह को लेकर हुए अध्ययन में पाया गया कि 90 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके बालिग होने से पहले ही किया गया।

मुताह जैसे अमानवीय विवाह को भारत से पूरी तरह समाप्त किया जाए

इक्कीसवीं सदी में ऐसे कानून जो औरत को यौन दासी बनाकर रखने या किराये पर यौन आनंद के लिए उपभोग किए जाने की वकालत करते हों, उनका वजूद में रहना ही इस देश के लिए एक शर्म का विषय है। आज की औरत ऐसे किसी भी कानून से फौरन मुक्ति चाहती है। आज जब हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं तो आवश्यकता इस बात की भी है कि मुताह जैसे नितांत अमानवीय विवाह को भारत से पूरी तरह समाप्त किया जाए और ऐसी दुल्हनों के सौदागरों के लिए देश में एक कड़ा कानून बनाया जाए। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यह एक संकल्प तो लिया ही जाना चाहिए।

Khabar Satta

खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता

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