सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि कॉलेज में नामांकन में यदि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार प्रतिभा के आधार पर सामान्य श्रेणी की मेरिट में आता है तो उसे सामान्य श्रेणी में सीट मिलेगी। चाहे उसने आरक्षित वर्ग की सीट पर ही दावा क्यों न किया हो। ऐसे हालात में उसकी जगह खाली हुई आरक्षित वर्ग की सीट आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को ही जाएगी, सामान्य वर्ग के छात्र को नहीं।
जस्टिस अरुण मिश्रा और एम. शांतानागौदर की बेंच ने यह आदेश देते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले पर गुरुवार को अपनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि यदि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार, जो सामान्य मेरिट में चयनित हुआ है लेकिन आरक्षित वर्ग में ही सीट की मांग करता है, तो भी उसे सामान्य वर्ग में ही माना जाएगा। और उसकी जगह आरक्षित वर्ग में खाली हुई सीट आरक्षित वर्ग को ही जाएगी। यह सीट सामान्य वर्ग को नहीं मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि यह पहले से ही तय है कि आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को किसी भी स्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह कॉलेजों में दाखिलों का मामला है, सेवा का नहीं। मामला सेवा का होता तो स्थिति अलग होती।
कोर्ट ने अपीलकर्ता का यह तर्क खारिज कर दिया कि आरक्षित वर्ग के व्यक्ति का मेरिट में आने से एक सामान्य श्रेणी की एक सीट कम हुई है, इसलिए यह सीट सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को ही दी जाए।
मामला बिहार के मेडिकल कॉलेजों में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन का था। छात्र त्रिपुरी शरण ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।