दादी-नानी के घरेलू इलाज में काम लिए गये वे नुस्खे जो कोरोना कॉल के दौरान इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर साबित हुए, विशेषकर दूध-हल्दी, दालचीनी, तुलसी, काली मिर्च जैसे दर्जनों जीआई टैग प्राप्त मसाले अब 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बदले निर्यात किये जायेंगे।
इसके लिए केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अपना लक्ष्य तय कर लिया है। हल्दी ने तो अब तक निर्यात के क्रम में 42 प्रतिशत का इजाफा किया है।
मसाला उत्पाद की विश्व के 180 देशों में मांग बढ़ने का कारण यह भी है कि इस समय महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अत्याधुनिक प्रयोगशाला कार्यरत है।
जहां मसालों में काली, सफेद, हरी मिर्च, जीरा, अजवायन, लहसुन, लौंग, तुलसी और अदरक के लिए वैश्विक गुणवत्ता मानकों को विकसित किया गया है। कुर्ग की हरी इलायची, मिंजो जिंजर एवं कन्याकुमारी के लौंग सहित 26 भारतीय मसालों को जीआई टैग मिल चुके हैं।
देश के मसाले जहां भारतीय भोजन और जीवन शैली के अभिन्न अंग बन चुके हैं, वहीं ये मसाले अब विश्व के कई देशों की मांग बन चुके हैं। इलायची मिली अदरक की चाय से लेकर कॉस्मेटिक में उपयोग हल्दी तथा दंत उत्पादों तक में लौंग और मेंथॉल का उपयोग देश से बाहर भी होने लगा है।
मसाला उद्योग के बड़े कारोबारी के अनुसार भारत सदियों से दुनिया का मसाला कटोरा रहा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा मसालों का उत्पादक और उपभोक्ता है। केरल से काली मिर्च, गुजरात से अदरक और पूर्वोत्तर की नागा मिर्च के अलावा हमारे कश्मीर का केसर विश्व प्रसिद्ध है।
हाल ही में हुई मसाला बोर्ड की 36 वी वर्षगांठ के दौरान केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने दावा किया कि वर्ष 2030 तक 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का मसाला कारोबार करेंगे और इसके लिए निर्यात करने का लक्ष्य भी तय किया जा चुका है। उन्होंने 26 भारतीय मसालों को मिल चुके जीआई टैग की संख्या बढ़ाने के लिए भी आह्वान किया।
विदित रहे वास्को डी गामा के भारत के लिए समुद्री मार्ग खोजने के पीछे मसाले ही प्रमुख कारण थे और 1498 में केरल तट पर पहुंचने की सफलता ने विश्व इतिहास को बदल डाला और भारतीय मसालों का उपयोग दुनिया के अनगिनत देशों में होने लगा।