शेरशाह (Shershaah Movie) की कहानी कारगिल युद्ध (Kargil war) के नायक पीवीसी कप्तान विक्रम बत्रा (PVC Captain Vikram Batra) पर आधारित है। फ़िल्म में विक्रम बत्रा का किरदार सिद्धार्थ मल्होत्रा निभा रहे हैं। विक्रम बत्रा ने 1999 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सीमा पर दुश्मनों से लड़ने के लिए अपना बलिदान दिया था। करण जौहर, सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी ने फिल्म के पोस्टर भी सोशल मीडिया पर साझा किए।
ऐसा है सिद्धार्थ मल्होत्रा का लुक
इन पोस्टर में सिद्धार्थ मल्होत्रा कैप्टेन बिक्रम बत्रा के लुक में दिखाई दे रहे हैं। वह सेना की यूनीफॉर्म में हैं और उनके हाथ में राइफल है। एक पोस्टर में वह काफई अग्रेसिव नजर आ रहे हैं, जबकि दूसरे पोस्टर में वह कुछ साथियों के साथ एक पहाड़ी की आड़ में दुश्मन की ओर बढ़ रहे हैं। इन पोस्टर को शेयर करते हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा ने लिखा,”कैप्टेन बिक्रम बत्रा की अनसुनी कहानी का खुलासा बड़े पर्दे पर होने जा रहा है।”
करण जौहर ने किया ये पोस्ट
सिद्धार्थ ने आगे लिखा,”शेरशाह आपके नजदीकी सिनेमाघरों में 2 जुलाई 2021 को रिलीज होगी।” वहीं, करण जौहर ने पोस्टर शेयर करते हुए लिखा,”कैप्टेन बत्रा (पीवीसी) की जीवन से बड़ी कहानी का खुलासा बड़े पर्दे पर होगा। हमें गर्व है कि हम इस यात्रा को दिखाएंगे। शेरशाह 2 जुलाई को 2021 को रिलीज होगी। सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी लीड में हैं और विष्णु वर्धन ने इसे डायरेक्ट किया है।”
कौन थे विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा (09 सितम्बर 1974 – 07 जुलाई 1999) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की। उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।[1]
पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था। जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। उन्होंने सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस (संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा) की भी तैयारी शुरू कर दी। हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी जिसे इनके द्वारा ठुकरा दिया गया।
विक्रम बत्रा का सैन्य जीवन
विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया।
5140 चोटी पर जीत
इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कैप्टन बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बडे़ और बिना शत्रु को भनक लगे हुए उसकी मारक दूरी के भीतर तक पहुंच गए। कैप्टेन बत्रा ने अपने दस्ते को पुर्नगठित किया और उन्हें दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने के गुतथ्मगुत्था लड़ाई मे उनमें से चार को मार डाला। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्ज़े में ले लिया।कैप्टन विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आ गयी।
4875 वाली संकरी चोटी पर जीत
इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया। सबसे आगे रहकर उन्होंने अपने साथी जवानों को एकत्र करके आक्रमण के लिए प्रेरित किया और दुश्मन की भारी गोलीबारी के सम्मुख एक लगभग असंभव सैन्य कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। किंतु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।
उनके इस असाधारण नेतृत्व से प्रेरित उनके साथी जवान प्रतिशोध लेने के लिए शत्रु पर टूट पड़े और शत्रु का सफ़ाया करते हुए प्वॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया।
कैप्टन बत्रा के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाई.के. जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।
सम्मान
इस प्रकार कैप्टन विक्रम बत्रा ने शत्रु के सम्मुख अत्यन्त उतकृष्ट व्यक्तिगत वीरता तथा उच्चतम कोटि के नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 7 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ।
वेब टाइटल : Shershaah Release Date: You will be able to see stories of Captain Batra’s bravery in Sher Shah Movie, to be released in theaters on this day