आत्मनिर्भर भारत के आत्मनिर्भर बीड़ी मजदूर

By SHUBHAM SHARMA

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हमारे देश में मोदी सरकार के शासनकाल में “आत्मनिर्भर भारत” एक ऐसा शब्द जो नेताओं की ज़बाँ  से निकल कर हमारे सम्मुख तब आया जब हमारा मुल्क कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहा था और यह लड़ाई अब और अधिक तेज हो गई है आत्मनिर्भर भारत जिसकी कल्पना करना भी दुर्भेद्य है।

इस कोराना महामारी के वक्त पिछले वर्ष यानी 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार ने पिछले दिनों स्वनिधि स्कीम का आगाज किया था। इस योजना के तहत रेहड़ी-पटरी वालों और मुफलिस मजदूरों के लिए 10000 ₹ की राशि लोन देने का फरमान जारी किया था यह पैसा खासकर लघु उद्योग प्रारंभ करने तथा विस्तार करने के लिए दिया गया था। लेकिन यह भी यथार्थ है कि यह रकम मुफलिस परिवार के 2 माह के खर्च के सदृश भी नहीं थी। 

अब हम वर्तमान वक्त के संदर्भ में बात करते हैं तो इस वक्त हमारे ग्रामीण भारत में आवाम को रोजगार मिलना मुहाल हो गया है जिससे लोगों के आत्मनिर्भर उद्योग तौर पर काफी समय से प्रचलन में रहा उद्योग बीड़ी उद्योग ही उनके सम्मुख है और कोरोना काल में ग्रामीण परिवेश की आवाम बीड़ी उद्योग पर ही अवलंबित है

हमारे देश के जिन-जिन इलाकों में जंगल है वहाँ पर लोग गर्मियों के वक्त प्रमुख रूप से मई और जून माह में तेंदूपत्ता को तोड़ने का कार्य करते हैं तथा इस वक्त गांव में सबसे ज्यादा मुफलिस मजदूर तेंदूपत्ता तोड़ने जा रहे हैं जो कि मध्य रात्रि के उपरांत और सुबह होने के पूर्व लगभग 3:00 बजे से लेकर 5:00 बजे के मध्य घर से पहाड़ों की ओर तेंदूपत्ता तोड़ने के लिए रवाना होते हैं

इन मजदूरों में कोई पैदल तो कोई साइकिल से तो कोई दो पहिया वाहन से जाते है और जंगलों में 5 किलोमीटर से लेकर 15 किलोमीटर तक अधिकतर पैदल ही तेंदूपत्ते की तुडा़ई करते हैं तथा यह आत्मनिर्भर श्रमिक 4 से 6 घंटों के दौरान 1 से लेकर 5 सैकड़ा गड्डी के तौर पर तेंदूपत्तों को तोड़कर दोपहरी के पहले यानी तकरीबन 10 से 12 बजे के मध्य घर वापिस लौट आते हैं। 

अब हम जिक्र करते हैं कि मजदूर तेंदूपत्ता कैसे तोड़ते हैं तो यह जंगल को जाते वक्त अपने साथ तेंदूपत्ता तोड़ने के लिए तीन कपड़े ले जाते हैं उनकों एक-एक करके क्रमशः अपने कंधे से लेकर कमर तक झोली के आकार में बांध लेते हैं तथा तेंदूपत्ते तोड़ने लग जाते और जैसे ही एक झोली पत्ते हुए तो उसे रखकर दूसरे कपड़े की झोली बना लेते हैं

ऐसे ही उनकी 10 से लेकर 40 किलो तक की तेंदूपत्तों की एक पोटली तैयार हो जाती है तथा तेन्दूपत्ता तोड़ने के साथ-साथ श्रमिक पहाड़ से पहाड़ी फल तेन्दू, कांकेर, आचार बीजी, कुल्ला नामक पेड़ की गाद, किरवारे की कौस और फूल आदि खाने की चीजें अपने साथ लाते है एवं मूल रूप से गर्मियों के दिनों में लगभग एक से ढेड़ माह तक इन श्रमिकों का कार्य तेंदूपत्ते की तुडा़ई ही रहता है और इन पत्तों को सुखाने के लिए 1 सप्ताह से लेकर 2 सप्ताह तक की अवधि लगती है

फिर उसके पश्चात् सीजन के अनुरूप यह श्रमिक बीड़ी बनाने लगते हैं जो कि तेन्दु के पत्तों में तम्बाकू के साथ लपेटकर बनाई जाती है और यह वही बीड़ी है जिसे भारतीय सिगरेट भी कहा जाता है तथा ऐसे श्रमिकों की आजीविका का प्रमुख साधन बीड़ी उद्योग है जो प्राचीन वक्त से प्रचलन में है और बीड़ी बनाने वाले मजदूरों को तकरीबन 1000 बीड़ी बनाने पर 100 ₹ की प्राप्ति हो पाती है और यह 1000 बीड़ी सामान्य तौर पर यह है एक से दो दिन के भीतर बना लेते हैं

इससे आप तसव्वुर कर सकते हैं इतने कम पैसों में यह अपनी जीविका कैसे चलाते होगें तथा इनमें कुछ श्रमिक तेंदूपत्ता भी बेचते हैं एवं उससे अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करते हैं और यह ऐसे मुफलिस मजदूर है जो अपने निजी बीड़ी उद्योग पर आलंबित है तथा बीड़ी मूल रूप से ग्रामीण कुटीर उद्योग है, इसमें देशभर के 2.6 करोड़ तंबाकू किसान, 25 लाख बीड़ी मजदूर, 40 लाख से अधिक आदिवासी तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार और 75 लाख से ज्यादा पनवाड़ियों के रोजगार का माध्यम है तथा इस कोरोना महामारी के समय में ग्रामीण अंचलों के श्रमिक जंगलों में अपने बीड़ी उद्योग को चलाने के लिए तेंदूपत्ता तोड़ने में लगे हैं ताकि वह साल में 8 से 10 माह तक बीड़ी बना सके और जिससे उनकी आजीविका चल सकें तथा यकीनन यह आत्मनिर्भर भारत के आत्म निर्भर मजदूर है।

SHUBHAM SHARMA

Khabar Satta:- Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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