चुनौतीभरे होंगे आने वाले दिन, क्या सरकार और किसानों में होगी सुलह?

Khabar Satta
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Khabar Satta
खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता
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कृषि सुधार कानूनों को लेकर दिल्ली में डटे लाखों किसानों को मनाने के लिए क्या सरकार के पास कोई रास्ता है यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सारी दुनिया जानना चाहती है। पिछले कईं दिनों से चल रहे किसान आंदोलन को खत्म कराने के सरकारी प्रयास तेज हो गए हैं और अगर उनमें कामयाबी मिली तो आंदोलन खत्म हो सकता है। वहीं जिस तरह दिल्ली मेें ठंड और कोरोना का खतरा बढ़ रहा है आगे आने वाले दिन किसानों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। इस कड़कड़ती ठंड में जहां कईं लोग घर से बाहर नहीं निकलते वहीं किसान अपनी मांगों के चलते सड़कों पर बैठे हुए है। आंदोलन में बारिश और तेज हवा से टेंट और सामान को बचा पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है, लेकिन फिर भी वे डटे है ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए कहीं खेती घाटे का सौदा ना बन जाए।

कृषि सुधार कानूनों को लेकर नहीं निकला कोई हल
दरअसल किसानों और सरकार के बीच कईं बार बातचीत हो चुकी है लेनिक अभी कृषि सुधार कानूनों को लेकर कोई हल नहीं निकला है। जहां किसान इस कानून को पूरी तरह खत्म की मांग कर रहे हैं तो वहीं सरकार का कहना है कि यह कानून बहुत सोच समझकर कृषि कानून बनाया है। किसानों के जीवन में बदलाव लाने के लिए बनाया गया है। किसानों के साथ सालों से जो अन्याय हो रहा है, उसे दूर करने के लिए बनाया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर ये संघर्ष कब तक चलता रहेगा, क्योंकि गिरते तापमान और कोरोना के खतरे को देखते हुए प्रदर्शनकारियों के लिए आगे के दिन बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।

कोहरे और ठंड में किसान कांपते रहे, लेकिन इरादे पहाड़ जैसे मजबूत
दिल्ली में कोहरा और कड़ाके की ठंड भी किसानों के हौंसले नहीं तोड़ पा रही। धरना स्थल पर दिनभर चहल पहल के बाद रोज रात को लोग अपने अपने जगहों पर पहुंच जाते हैं, जहां उन्होंने रुकने का अपना ठिकाना बनाया हुआ है। कुछ किसान गांव से लाए हुए ट्रॉलियों में सोने की व्यवस्था ढूंढ लेता है, तो कोई जिन बसों में बैठ कर आए थे वहां पर सोने के लिए निकल जाते हैं, लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं  जिन्हें अब भी धरना स्थल पर सोने की जगह नसीब नहीं होती है। उन लोगों के लिए यह सर्द हवाएं मानो किसी मुसीबत से कम नहीं , इसके बावजूद यहां प्रदर्शन कर रहे लोगों के जज्बे में कोई कमी देखने को नहीं मिली हैं। अब तक कई किसानों की मौत भी हो चुकी है।

हमारें हौंसले नहीं तोड़ सकती ये ठंड
किसानों का कहना है कि हम पंजाब से हैं। जहां भी जाते हैं, प्यार बांटते हैं। न तो कोरोना वायरस और न ही ठंड हमें हमारी लड़ाई लडऩे से रोक पाएगी। उन्होंने कहा कि जब तक कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया जाता, तब तक हम वापस नहीं जाने वाले।  किसान ने कहा कि उन्हें अपने गांववालों का पूरा समर्थन हासिल है। हर घर से कम से कम एक व्यक्ति यहां प्रदर्शन में शामिल हुआ है। सड़क पर एक के पीछे एक 500 से अधिक ट्रैक्टर खड़े हैं। अधिकतर पर पोस्टर लगे हैं, जिनपर किसान नहीं तो खाना नहीं, जीडीपी नहीं, कोई भविष्य नहीं जैसे नारे लिखे हुए हैं। उनका कहना है कि हमारी मांगे अभी भी वही बनी हुई हैं कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए और एमएसपी को कानूनी अधिकारी बनाया जाए। उन्होंने कहा कि अगर हमारी मांगे नहीं मानी गई तो आने वाले दिनों में आंदोलन को तेज किया जाएगा।

आंदोलन में नेताओं के बयानों से भी चढ़ा सियासी पारा
एक ओर जहां किसान आने वाले दिनों में आंदोलन को तेज करने की चेतावनी दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई केन्द्रीय मंत्री बार-बार आरोप लगा रहे हैं कि माओवादियों, वामपंथियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने किसानों के आंदोलन पर कब्जा कर लिया है। प्रदर्शनकारी किसान संघों के नेताओं इस आरोप को खारिज कर दिया है। आंदोलन का समर्थन कर रहे विपक्षी दलों के नेताओं के बयानों से भी सियासी पारा चढ़ गया है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रविवार को कहा कि नये कृषि कानून के खिलाफ किसानों के आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे टुकड़े-टुकड़े गैंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिये इस शब्द का इस्तेमाल करती है। वहीं, केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने विपक्षी दलों पर नए कृषि कानूनों के बारे में दुष्प्रचार करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि इन कानूनों से कुछ समय के लिये परेशानियां हो सकती हैं, लेकिन लंबे समय में ये किसानों के लिये फायदेमंद साबित होंगे।

सरकार रच रही है किसानों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए साजिश
इसी बीच प्रदर्शनकारी किसान संघों के नेताओं ने कहा है कि वे सोमवार को एक दिन की भूख हड़ताल करेंगे और नए कृषि कानूनों की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिये सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया जाएगा। सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर पिछले 18 दिन से चल रहे प्रदर्शनों में पंजाब और अन्य राज्यों से और किसानों का आना जारी है।  सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि नेता अपने-अपने स्थानों पर सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक भूख हड़ताल करेंगे। उन्होंने पत्रकारों से कहा, देशभर के सभी जिला मुख्यालयों में धरने दिये जाएंगे। प्रदर्शन इसी प्रकार चलता रहेगा। चढूनी ने कहा, कुछ समूह प्रदर्शन खत्म कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वे सरकार द्वारा पारित कानूनों के पक्ष में हैं। हम स्पष्ट करते हैं कि वे हमसे नहीं जुड़े हैं। उनकी सरकार के साथ साठगांठ है। उन्होंने हमारे आंदोलन को कमजोर करने का षडय़ंत्र रचा। सरकार किसानों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिये साजिश रच रही है।

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