छपारा (सिवनी)। भाजपा शासित छपारा नगर परिषद में भ्रष्टाचार की एक और चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। नगर की सीमाओं पर बनाए गए स्वागत द्वारों का निर्माण बिना पार्षदों की सहमति और सभापतियों की जानकारी के ही पूरा कर दिया गया और ठेकेदार को लाखों रुपए का भुगतान भी कर दिया गया।
इस पूरे मामले में सीएमओ, उपयंत्री और नगर परिषद अध्यक्ष निशा पटेल की “तिगड़ी” की संदिग्ध भूमिका सवालों के घेरे में है। पार्षदों और सभापतियों को जानकारी तक नहीं है कि कब प्रस्ताव पारित हुआ और कब ठेकेदार को भुगतान हो गया।
स्वागत द्वारों में भारी गड़बड़ी, लेकिन जिम्मेदार खामोश!
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छपारा नगर परिषद द्वारा नगर की सीमाओं पर करीब 15 लाख रुपये की लागत से चार स्वागत द्वार बनवाए गए हैं। प्रत्येक द्वार की कीमत लगभग 4 लाख रुपये बताई गई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन द्वारों का निर्माण कार्य न तो संबंधित वार्ड पार्षदों की सहमति से किया गया और न ही इस पर सभापति मंडल को कोई जानकारी दी गई।
इंदौर के ठेकेदार को सीधे भुगतान कर दिया गया, जबकि निर्माण कार्य में भारी अनियमितताएं सामने आई हैं। बिना वॉटर लेवल का उपयोग किए सीधे खंभे गाड़ दिए गए, जिससे कई स्वागत द्वार आड़े-तिरछे खड़े हैं और आने वाले समय में दुर्घटनाओं को न्योता दे सकते हैं।
वार्ड नंबर 11 का स्वागत द्वार बना खतरा, कभी भी हो सकता है हादसा
वार्ड क्रमांक 11 रानी दुर्गावती की सीमा पर लगाया गया स्वागत द्वार तो पूरी तरह से झुक चुका है। इस द्वार के बोल्ट ठीक से नहीं कसे गए हैं और इसकी स्थिति देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह कभी भी गिर सकता है, जिससे मानव जीवन को खतरा हो सकता है।
इस गंभीर मुद्दे को नगर परिषद उपाध्यक्ष ठाकुर शिवाकांत सिंह ने 5 मई को लिखित पत्र के माध्यम से प्रशासन को अवगत भी कराया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
क्या नगर परिषद अध्यक्ष की चुप्पी है मौन स्वीकृति?
नगर परिषद अध्यक्ष निशा पटेल की इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी अब सवालों के घेरे में है। जब पूरे शहर में निर्माण कार्यों में गड़बड़ियों की शिकायतें मिल रही हैं, तब अध्यक्ष का मौन साधे रहना संदेह पैदा कर रहा है।
जानकारों का कहना है कि अध्यक्ष की चुप्पी शायद इस बात का संकेत है कि वे स्वयं इन अनियमित कार्यों में मौन समर्थन दे रही हैं। सवाल ये भी उठ रहा है कि अब तक नगर परिषद में करोड़ों के निर्माण कार्य चल रहे हैं, लेकिन एक भी मौके पर अध्यक्ष निशा पटेल ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई।
जबकि कई मामलों में पार्षदों और सभापतियों ने जिला कलेक्टर को लिखित शिकायतें तक सौंपी हैं, फिर भी नगर परिषद में जिम्मेदारों की जवाबदेही तय नहीं की जा रही।
जाँच जरूरी, जवाबदेही तय हो
छपारा नगर परिषद में भ्रष्टाचार का यह ताज़ा मामला बताता है कि किस प्रकार लोकल गवर्नेंस की जवाबदेही खतरे में है। यदि इस तरह से पार्षदों और सभापतियों को अंधेरे में रखकर कार्य होते रहेंगे, तो जनता की भागीदारी और पारदर्शिता केवल दस्तावेजों तक सीमित रह जाएगी।
जिला प्रशासन और शासन को इस मामले में तत्काल जांच बैठानी चाहिए और दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की भ्रष्टाचार की घटनाओं पर लगाम लगाई जा सके।