जब अपने विरोधी कार्टून पर बाल ठाकरे ने कार्टूनिस्ट की ठोकी थी पीठ

SHUBHAM SHARMA
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मुंबई। दो दिन पहले मुंबई में एक सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी मदन शर्मा के साथ हुई हिंसा की घटना में जिस दल के लोग शामिल रहे, उसी दल शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे न सिर्फ स्वयं उच्च कोटि के कार्टूनिस्ट थे, बल्कि राजनीति में प्रवेश के बाद अपने विरोध में बने कार्टूनों की भी सराहना करते थे। बात 1996 की है। महाराष्ट्र में सरकार शिवसेना-भाजपा गठबंधन की थी। पुणे के अलका थिएटर में रमेश किणी नामक एक व्यक्ति का शव पाया गया और उसकी संदिग्ध मौत में शिवसेना के ही एक बड़े नेता राज ठाकरे पर अंगुलियां उठने लगी थीं। इस घटना के बाद शिवसेना पर विरोधी दलों द्वारा तो कड़े प्रहार किए ही जा रहे थे, सहयोगी दल भाजपा भी अवसर को भुनाने की ताक में थी।

अलका थिएटर में जो अंग्रेजी फिल्म देखते हुए रमेश किणी की मौत हुई थी, उसका नाम था ब्रोकेन ऐरो (टूटा हुआ तीर)। शिवसेना का चुनाव निशान भी तीर-कमान ही है। मुंबई के एक युवा कार्टूनिस्ट प्रशांत कुलकर्णी ने इस घटना पर एक कार्टून बनाया, जिसमें धनुष पर सधे एक टूटे तीर की नोक से खून टपकता दिखाया गया और ऊपर टिप्पणी की गई – ‘ब्रोकेन ऐरो- खलबली मचा देने वाला भयानक सिनेमा’।

यह कार्टून मुंबई के एक समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बाद कार्टूनिस्ट प्रशांत कुलकर्णी के पास शिवसेना नेता राज ठाकरे का फोन आया उन्हें ‘सामना’ कार्यालय में आकर मिलने को कहा। प्रशांत उनसे मिलने गए तो राज ठाकरे ने उनसे कहा कि आपका कार्टून बहुत बढ़िया है। मैंने देखा नहीं था। मुझे बाला साहब ने फोन करके कहा कि आज के महानगर में प्रकाशित कार्टून देखो, तब मैंने देखा। इस घटना के करीब एक माह बाद ही प्रशांत को बाला साहब ठाकरे के साक्षात्कार का भी अवसर मिला। बाला साहब को उस समय भी वह कार्टून याद था। उन्होंने प्रशांत से कहा कि तुम्हारा वह ब्रोकेन ऐरो वाला कार्टून बहुत अच्छा था।

प्रशांत आज भी बाला साहब से मिली इस शाबाशी को अपने लिए एक बड़ा सर्टिफिकेट मानते हैं। वह कहते हैं कि उस दौर में कार्टूनिस्ट भी अपने कार्टून में कमर से नीचे वार नहीं करते थे, और जिनका कार्टून बनाया जाता था, वे भी उसे स्वस्थ भावना से स्वीकार करते थे।

बाला साहब ठाकरे की ठीक बाद की पीढ़ी के कार्टूनिस्ट व साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग में कार्टून कोना ‘डब्बू जी’ बनाकर पूरे हिंदी जगत का दिल जीत चुके आबिद सुरती कहते हैं कि इंदिरा गांधी को आरके लक्ष्मण के बनाए कार्टून बहुत पसंद आते थे, लेकिन उनकी लक्ष्मण से इस बात को लेकर अक्सर नोकझोंक हुआ करती थी कि आप मेरी नाक तोते जैसी क्यों बनाते हैं ? आबिद सुरती बताते हैं कि इसी तरह पंडित नेहरू को वरिष्ठ कार्टूनिस्ट शंकर के बनाए कार्टून पसंद थे। वह शंकर के खुद पर बने तीखे कार्टूनों की भी प्रशंसा करते हुए कहते थे कि इनसे मुझे प्रेरणा मिलती है।

अंग्रेजी दैनिक मिड-डे के वरिष्ठ कार्टूनिस्ट मंजुल कहते हैं कि कार्टून का उद्देश्य इतना होता है कि आप सत्ता के लोगों को एक इशारा करके बता सकें कि आप कहां गलत हैं। अच्छा कार्टून होता ही वही है, जो सत्ता के लोगों की कमियां उजागर करे। मंजुल कहते हैं कि किसी भी कविता, कहानी या कार्टून का जवाब उसी भाषा में दिया जाना चाहिए, न कि हिंसा से।

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Khabar Satta:- Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.