जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी अप्रूवल, जल्द बाजार में आने की उम्मीद

By Ranjana Pandey

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डेस्क।देश में बढ़ते कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के मामलों के बीच एक अच्छी खबर सामने आई है। सरकार ने अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन के इमजेंसी यूज को अप्रूवल दे दिया है। अब इसके भारतीय बाजार में जल्द मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने शनिवार को सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी।


पिछले सप्ताह ही अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने भारत में कोरोना टीके के तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति मांगी थी। हालांकि भारत में वैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए क्लिनिकल ट्रायल जरूरी नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक जॉनसन एंड जॉनसन की ओर से डीसीजीआई को दी गई अर्जी में कहा गया था कि वे भारत में 600 लोगों पर ट्रायल करना चाहते हैं। दो समूह में ट्रायल की अर्जी दी गई थी। एक समूह में 18 से 60 वर्ष के लोगों को रखा जाएगा।


दूसरे में 60 वर्ष से अधिक के लोग होंगे। तीसरे चरण में टीके की सुरक्षा और प्रतिरक्षण क्षमता की जांच होगी। जॉनसन एंड जॉनसन के इस टीके की एक ही खुराक लगनी है। वैक्सीन लगने के 28 दिन बाद रक्त के नमूनों को लेकर इम्युनिटी लेवल की जांच होगी।


एक डोज में होगा काम और वैक्सीन को जमाकर रखने की जरूरत नहीं
जॉनसन एंड जॉनसन ऐसी तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, जिसके दूसरे बीमारियों से लड़ने में रिकॉर्ड बेहतरीन रहा है। जॉनसन एंड जॉनसन जिस वैक्सीन का निर्माण कर रही है, उसे न तो अस्पताल भेजे जाने तक फ्रीजर में रखने की जरूरत है और हो सकता है कि मरीज का एक डोज में इलाज हो जाए। इतिहास में कभी भी वैक्सीन टेस्टिंग और निर्माण इतनी तेजी से नहीं हुआ। जॉनसन एंड जॉनसन के पीछे सैनोफी और नोवा वैक्स भी वैक्सीन डेवलप करने में लगी हुई हैं। इनके भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है।


वैक्सीन में क्या है खास?
जॉनसन एंड जॉनसन ने कोरोनावायरस से जीन लेकर ह्यूमन सेल तक पहुंचाने के लिए एडीनोवायरस का इस्तेमाल किया है। इसके बाद सेल कोरोनावायरस प्रोटीन्स बनाता है, न कि कोरोनावायरस। यही प्रोटीन बाद में वायरस से लड़ने में इम्यून सिस्टम की मदद करते हैं।

एडीनोवायरस का काम वैक्सीन को ठंडा रखना होता है, लेकिन इसे जमाने की जरूरत नहीं होती है। जबकि, इस समय वैक्सीन के दो बड़े उम्मीदवार मॉडर्ना और फाइजर mRNA जैनेटिक मटेरियल पर निर्भर हैं। इन कंपनियों की वैक्सीन को फ्रीज में रखने की जरूरत है, जिसके कारण इनका वितरण और मुश्किल हो जाएगा। खासतौर से उन जगहों पर जहां अच्छी मेडिकल सुविधाएं नहीं हैं।

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