टूलकिट मामले में Google ने दिल्ली पुलिस को भेजा जवाब, खुल गई दिशा और उसके साथियों की पोल

By Khabar Satta

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नई दिल्ली। टूलकिट मामले में गूगल से साइबर सेल को आइपी एड्रेस समेत कई अहम जानकारी मिली है। स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के विवादित ट्वीट को लेकर पांच फरवरी को साइबर सेल ने गूगल से ईमेल के माध्यम से जानकारी मांगी थी कि टूलकिट किस देश व शहर में तैयार की गई और किस आइपी एड्रेस पर इसे तैयार कर इंटरनेट मीडिया पर डाला गया? जिसपर गूगल ने साइबर सेल को कुछ अहम जानकारी मुहैया करा दी है। पुलिस ने मामले में गिरफ्तार जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत अर्जी पर बहस के दौरान पटियाला हाउस कोर्ट में यह जानकारी दी।

दलील में पुलिस ने कहा कि दिशा ने “इंटरनेशनल फार्मर स्ट्राइक’ नाम से वाट्सएप ग्रुप बनाया था, उसमें काफी बातचीत थी, जिसे पकड़े जाने के डर से बाद में डिलीट कर दिया गया था। आरोपितों ने आस्क इंडिया व्हाई (भारत से पूछो, क्यों) नाम से वेबसाइट इसलिए बनाया ताकि खालिस्तानी मुद्दे को भारत में बढ़ावा दिया जाए। ऐसा कर खालिस्तानी संगठन भारत मे अपना प्रचार चाहते थे। इसलिए ‘आस्क इंडिया व्हाई’ नाम से हैशटैग भी शुरू किया गया था।

पुलिस ने कोर्ट को यह भी बताया कि कनाडा के “पोएटिक जस्टिक फाउंडेशन’ से जुड़ा एमओ धालीवाल भारत में कृषि कानून विरोधी आंदोलन की आड़ में माहौल खराब करने की फिराक में था। वह सीधे कोई कार्रवाई करता तो बेनकाब हो जाता इसलिए उसने भारत में कुछ चेहरों का सहारा लिया। जिनमें दिशा रवि, निकिता जैकब व शांतनु मुलुक जैसे कई अन्य शामिल हैं। दिशा रवि की तरफ से किसानों को लेकर जो ग्रुप बनाया गया उसका मकसद लोगों को भ्रमित करना था। मो धालीवाल, अनिता लाल व देश के बाहर बैठे अन्य साजिशकर्ताओं ने देश के खिलाफ खतरनाक साजिश रची। साजिश के तहत ही 11 जनवरी को जूम पर इनकी मीटिंग भी हुईं। यह ग्रुप अलग खालिस्तान बनने की मांग कर रहा है। “सिख फार जस्टिस’ एक प्रतिबंधित संगठन है जिसने 11 जनवरी को इंडिया गेट पर 26 जनवरी को झंडा फहराने पर इनाम देने की घोषणा की थी।

कोर्ट में दलील में पुलिस ने कहा कि अगर टूलकिट में कुछ गलत नहीं था तो ये डर क्यों गए? डर कर इन्होंने कई चीजें डिलीट क्यों कर दी? किसान परेड को लेकर सोशल मीडिया पर पूरी भूमिका क्यों बनाई गई? पुलिस ने बताया कि जो सामग्री आरोपित के वकील द्वारा सील बंद लिफाफे में दी गई है वो अब वेबसाइट पर मौजूद नहीं है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि कश्मीर नरसंहार के बारे वेबसाइट में जो लिखा था उसके बारे में जानकारी प्राप्त की जा रही है। टूलकिट में ऐसी सामग्री डालकर लोगों को भ्रमित करने की भूमिका निभाई गई, जिससे माहौल को खराब किया जा सके। लोगों से अपील की गई कि वे आंदोलन से जुड़े। सरकार के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा बने। भारत सरकार खिलाफ बड़ी साजिश रची गई। मामला संज्ञान में लेते ही कई ईमेल को डिलीट कर दिया गया। 26 जनवरी वाले दिन पंफलेट तैयार किए गए थे। पुलिस ने कहा कि देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण यह बड़ा अपराध का कारण बना।

दिशा के पास यह अधिकार था कि टूलकिट को संपादित कर सकती थी, लेकिन उसने सभी सुबूतों को जानबूझ कर मिटा दिया। ऐसा करके उसने सुबूतों से छेड़छाड़ की है। पुलिस ने कहा कि दिशा के खिलाफ पर्याप्त सुबूत है। उसने टूलकिट में एडिट किया था। इसका सहयोगी शांतनु दिल्ली आया था। 20 से 27 जनवरी के बीच वह ढासा बार्डर पर आंदोलनकारियों के साथ बिताया था। इन लोगों की जो योजना थी वह 26 जनवरी को सफल नहीं हुई। अगर ऐसा होता तो स्थिति भयानक होती। कनाडा का वैंकुवर शहर खालिस्तान मूवमेंट का एक प्रमुख सेंटर है।

इनका मकसद हिंसा के दौरान पुलिस अपना आपा खोकर प्रदर्शनकारियोें पर ज्यादा से ज्यादा बल प्रयोग करती जिसमें अगर प्रदर्शनकारी जख्मी होते तो बाद में सोशल मीडिया अभियान के जरिये अफवाह फैलाकर माहौल खराब किया जाता। पुलिस ने कहा कि उन्होंने जब्त किए गए डिजिटल डिवाइस को जांच के लिए एफएसएल के पास भेज दिया है ताकि डिलीट किए गए डाटा को रिट्रीव किया जा सके।

पुलिस ने कोर्ट को बताया कि वाट्सएप ग्रुप चैट से पता चलता है कि दिशा टूल किट के बनाने और एडिट करने में शामिल थी। दिशा आखिर टूलकिट के अपलोड होने पर परेशान क्यों हो गई थी, उसने क्यों ग्रेटा को मैसेज किए, क्योंकि वह जानती थी कि वह एक साजिश का हिस्सा है और इसके नतीजे क्या हो सकते हैं। दिशा को तमाम हो रही चीजों के बारे में जानकारी थी। उसको यह पता था कि किस प्रकार लोगों को भ्रमित किया जा सकता है। शांतनु और निकिता को अंतरिम जमानत नहीं मिली है, जांच दिल्ली पुलिस कर रही है। मुंबई में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस मौजूद नहीं थी। उनको जांच में सहयोग करने की मोहलत दी गयी है। पुलिस ने पीटर के बारे में भी कोर्ट को जानकरी दी कि वह भी टूलकिट मामले में शामिल है, वह खालिस्तानी समर्थक है। उसके काफी खालिस्तानी नेटवर्क है। यह कोई संयोग नहीं है कि एक ही मौके पर मो धालीवाल व पीटर फ्रेडरिक एक साथ एक मंच पर आए हो। यह बड़ी साजिश का हिस्सा है।

Khabar Satta

खबर सत्ता डेस्क, कार्यालय संवाददाता

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