खूंटी। राज्य में छठ व्रत की शुरूआत 1955 में तोरपा के प्रमुख व्यवसायी देवेन्द्र साव की मां रामप्यारी देवी ने की थी। राम प्यारी देवी ने 67 वर्ष पहले तोरपा के डिगरी तालाब में छठ का अर्घ्य दिया था।
देवेन्द्र साव के पिता परमेश्वर साव बिहार के वैशाली जिले से आकर तोरपा प्रखंड के डिगरी गांव में बसे थे। बिहार में रहने के दौरान ही उनके परिवार में छठ व्रत होता था। उन्होंने ही तोरपा में इस पर्व की शुरूआत की। बाद में उनका परिवार तोरपा आ गया और मिशन हाता तालाब में छठ की शुरूआत की।
हाता तालाब में 1965 के करीब पांच परिवार छठ व्रत करते थे। इनमें बिहार से आये बालेश्वर शर्मा, देवीलाल साव, बुटन साव, हीरालाल के परिवार भी शामिल थे। 1970 के बाद छठ व्रतियों की संख्या में इजाफा होने लगा। एनएचपीसी कॉलोनी में रहनेवाले लोग भी बडी संख्या में छठ व्रत करने लगे। छठ महाव्रत की महत्ता जानकर स्थानीय लोग भी व्रत करने लगे। धीरे-धीरे व्रतियों की संख्या इतनी बढने लगी कि स्थान भी छोटा पड़ने लगा। खूंटी जिले का कोई ऐसा हिंदू बहुल गांव नहीं है, जहां छठ न होता हो।
जाड़े के दिन में तालाब के पानी में खड़ी महिला को देखने के लिए लगती थी भीड़
तालाब के पानी में व्रती रामप्यारी देवी को खडा देख लोगों का कौतूहल बढ गया। 1955 में स्थानीय लोगों को छठ व्रत क्या है, इसकी जानकारी नहीं थी। बुजुर्ग बालेश्वर साव बताते हैं कि प्रारंभिक समय में छठ पर्व के बारे में यहां के लोग नही जानते थे। कार्तिक के महीने में भी पशु बलि देकर पूजा करते थे। आलेश्वर साहू ने कहा कि जाडे के दिन में शाम को तालाब में कमर भर पानी में महिला को खडा देख लोग सोचने लगे कि कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं है। भारी संख्या में गांव वाले तालाब के पास पहुंचे गये।
धीरे-धीरे लोग छठ के बारे में जानने लगे और स्थिति यह हो गयी है कि छठ महाव्रत इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख पर्वों में शामिल हो गया है। स्व. परमेश्वर साहू और और देवीलाल साहू का परिवार लगातार 76 वर्षों से छठ करता आ रहा है। परिवार में इस बार भी इसका अनुष्ठान किया जा रहा है। सदान ही नहीं जनजातीय समाज के लोग भी पूरी श्रद्धा और निष्ठा से छठ महाव्रत का अनुष्ठान करते हैं। अब तो छठ घाटों में इस तरह की भीड़ उमड़ती हैं कि तिल धरने की जगह नहीं रहती।